Friday, December 14, 2012

जेल की रोटी


लघु कथा
                         जेल की रोटी

                                                         पवित्रा अग्रवाल
 
 "अरे राम प्रसाद जी आप इधर क्या कर रहे हैं...जेल में किसी से मिलने आए थे क्या ?'
 झेंपते हुए राम प्रसाद जी ने कहा -- "अरे नहीं शिव राम जी एक दूसरा काम था ।'
 "ऐसा क्या काम था बताइए ना शायद मैं कुछ मदद कर सकूँ ।'
 "आप यहाँ किसी को जानते हैं क्या ?'
 "हाँ जेलर साहब मेरे परिचित हैं।'
 "फिर तो शिव राम जी एक छोटा सा काम मेरा भी करा दीजिए ।'
 "बताइए क्या काम है ?
 "पिछले कुछ दिनों से आर्थिक संकट से घिरा हूँ तो पत्नी के आग्रह पर पंडित जी के पास चला गया ।  उन्हों ने जन्म कुंडली देख कर तो बस डरा ही दिया ।'
 "क्या बताया उन्होने ?'
 "उन्होंने बताया कि ग्रहों की दशा अच्छी नहीं चल रही है...मेरे भाग्य में जेल का योग भी है।'
 "अच्छा राम प्रसाद जी तो आप यहाँ अपनी सीट बुक कराने आए हैं या सर्वे करना चाहते हैं कि यहाँ   कैदियों को किन हालात में रहना पड़ता है ?'
 "अरे शिव राम जी आप तो मजाक करने लगे ।'
 "तो फिर आप ही बताइए कि यहाँ क्यों आए हैं ?'
 "मैं ने पंडित जी से इस संकट से बचने का उपाय पूछा तो उन्होंने ग्रह शान्ति के लिए पूजा पाठ कराने  को कहा है साथ ही सलाह दी है कि एक दो दिन मुझे जेल का बना भोजन करना चाहिए।'
 "ओ तो आप जेल की रोटी खाना चाहते हैं ?...अच्छा उपाय है ।'
 
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-पवित्रा अग्रवाल
 

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Wednesday, November 7, 2012

खिड़की खुली रखना

लघु कथा
                        खिड़की खुली रखना
                                                                    
                                                                          पवित्रा अग्रवाल
     
     दीपावली की शाम को फ्लैट से बाहर जाते हुए रोहन ने कहा --"मम्मी अपन सब लोग घर से बाहर जा रहे हैं, लौटते लौटते रात के ग्यारह बज सकते हैं,आप कहें तो खिड़कियाँ भी बन्द कर दूँ ?'
         "अरे नहीं,...कहा तो यह जाता है कि इस दिन घर  के खिड़की, दरवाजे सब खुले रखने चाहिए ताकि लक्ष्मी जी घर में प्रवेश कर सकें किन्तु आज के समय में ऐसा करने का मतलब है चोरों को दावत देना....पर खिड़की तो खुली छोड़ ही सकते हैं ।'
        "अरे मम्मी इस पटाखेबाजी के बीच खिड़कियाँ खुली रखना भी सुरक्षित नहीं है ।'
          "कुछ नहीं होता,तुम खिड़कियाँ बन्द नहीं करना ।'
        "ठीक है मम्मी मैं ने खिड़कियाँ खुली छोड़ दी हैं, अब चलें ?'
         रात को ग्यारह बजे वे सब घर लौटे तो पता चला कि किसी जलते हुये राकेट से उनकी खिड़की के पर्दे में आग लग गई थी किन्तु पड़ौसियों की सतर्कता से तभी आग बुझा दी गई और एक बड़ा हादसा होते होते बच गया ।

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-पवित्रा अग्रवाल
 

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Friday, October 5, 2012

पाप -पुण्य

लघु कथा             
         
                      पाप -पुण्य         
 
                                                                  पवित्रा अग्रवाल
 
 वसुधा अपनी पड़ौसन मिसेज रेड्डी से बात कर रही थी तभी उनका बेटा पप्पू भागता
हुआ आया --"मम्मी  आपके किचन में एक छिपकली घुस आई है,भगा दूँ वरना कहीं खाने में न गिर जाये ।'
 "छिपकली कहाँ से आ गई..  सब खिड़की दरवाजों पर तो जाली लगी है ।'
 "जरूर आपकी काम वाली ने पोछा लगाते समय दरवाजा खुला छोड़ दिया होगा ।..लाओ आप झाड़ू दो,  उस से भगा देता हूँ ।'
 "अरे बेटा छिपकली ही तो है भाग जायेगी अपने आप...वो तो सभी घरों में रहती हैं ,हमारे यहाँ भी हैं।'  मिसेज रेड्डी ने कहा
 "पर आन्टी हमारे घर में तो एक भी नहीं है,कभी आ जाती है तो हम  उसे भगा देते हैं।..मम्मी झाड़ू दो न ।'
 "बेटा संभाल कर निकालना कहीं मर न जाए..वरना पाप लगेगा ।'
 "आप पाप पुण्य मानती हैं आन्टी ?'
 "हाँ, पर वो तो सभी मानते हैं ।'
 "एक बात पूछूँ आन्टी ?'
 "हाँ पूछो ।'
 "आन्टी,मेरे हाथ से छिपकली मर जाने पर मुझे पाप लगेगा पर कुछ दिन पहले पूजा में आपने बकरी   कटवाई थी तब आपको पाप नहीं लगा था ?'


--
-पवित्रा अग्रवाल
 

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Saturday, September 8, 2012

उसका तर्क

लघु कथा                                  
                   उसका तर्क
                                                                                      
                                                                                              पवित्रा अग्रवाल       

    
    रघु ने हाथ उठा कर आटो वाले को रोक कर पूछा - "बाबू, सोमाजीगुड़ा चलोगे ?'
   "चलूँगा साब पर तीस रुपए लगेंगे ।'
  रघु ने झल्ला कर कहा - "फिर इस मीटर का क्या फायदा और मीटर के नीचे यह    स्टीकर क्यों चिपका रखा है जिस पर लिखा है -"पे बाइ द मीटर'।
  " वो तो आटो पर ये स्टीकर लगाना कम्पलसरी है तो लगाना पड़ता..पर कौन मानता   साब ?...'
      तभी रघु को  सिगरेट पीते हुए देख कर बोला -"साब आप सिगरेट पी रऐ इसके बाक्स पर भी लिखा रहता है कि सिगरेट हैल्थ के लिए नुक्सानदायक है लेकिन पीने वाले कब मानते ? '

 रघु मुस्कराया "अच्छा तर्क है।'
  "बैठो साब जो मीटर मे आए वही दे देना।'
      

-पवित्रा अग्रवाल

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Wednesday, August 1, 2012

पर क्या करूँ ?

   लघु कथा               
                                   पर क्या करूँ ?                                                     
                                                                    पवित्रा अग्रवाल
 
           दूसरी बार गर्भवती होने की बात सुनते ही सास ने कहा -"अल्पा अभी किसी को यह नहीं बताना कि तू पेट से है ।'  
        " क्यों मम्मी जी ?'
        " देख बहू परिवार तभी पूरा होता है जब उस में बेटा-बेटी दोनो हों ।....बेटी तो तेरे पास है बस एक बेटे की कमी है...आज कल तो एक टेस्ट कराने से पता लग जाता है कि गर्भ में लड़का है या लड़की ।..तू भी नरेन्द्र के साथ जा कर टेस्ट करा ले ....यदि गर्भ में लड़की हो तो...सफाई करा लेना ।'
         'ये आप क्या कह रही है  मम्मी जी ? बेटे की चाह मुझे भी है पर मैं एसा नहीं कर सकती ।... आप के यहाँ तो चीटी को मारना भी पाप माना जाता है ।आपने शादी से पहले ही मेरे अंडा खाने पर रोक लगा दी थी और अब आप ही मुझ से कह रही हैं कि गर्भ में पल रहे अपने अंश को मिटा दूँ।ये सब क्या है मम्मी ?क्या यह पाप नहीं ?...सब क्या कहेंगे यह भी आप ने नहीं सोचा ?'  
         "सब सोच के ही कह रही हूँ कि किसी को बताना नहीं ।...मैं जानती हूँ यह सब ठीक नहीं पर क्या करूँ ?"                                                     
    
 
 
       पवित्रा अग्रवाल
      घरोंदा--4-7-126,इसामियां बाजार,हैदराबाद--500027
 
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-पवित्रा अग्रवाल
 

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Monday, July 2, 2012

इतना भारी

लघु कथा                             
                                          
                               इतना भारी




                                                                              पवित्रा अग्रवाल




 स्कूल जाते हुए बच्चे की नजर मम्मी द्वारा पढ़े जा रहे समाचार पत्र पर पड़ी । उसने उत्सुकता से उसमें छपे एक चित्र को देख कर अपनी मम्मी से पूछा -- "मम्मी यह हमारे गवर्नर का फोटो है न ?'
 "हाँ '
 "फोटो में ये इतने सारे लोग मिल कर गवर्नर अंकल को क्या दे रहे हैं ?'
 "इन लोगों ने बाढ़ पीड़ितों के लिए एक लाख रुपया जमा किया है,उसी एक लाख रुपए का चैक गर्वनर को दे रहे हैं ।'
 " मम्मी चैक बहुत भारी होता है क्या जो इतने लोगों को मिल कर उठाना पड़ रहा है ?'



                                                           --------


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Tuesday, June 5, 2012

जन्म दिन

 

लघु कथा   -  पवित्रा अग्रवाल

                                             जन्म दिन

 
 पिन्टू का जन्म दिन था। अभी मामा का फोन आया था,खुशी से उसका चेहरा दमक रहा था ।

अचानक उसने मम्मी से सवाल किया -- "मम्मी सुबह से मामा , मौसी और यहाँ वाली बुआ का फोन तो आ गया पर चाचा ,ताऊ और दूसरी बुआ का फोन क्यों नहीं आया ?'

मुंह बना कर मम्मी ने कहा --"उनका तो कभी नहीं आता ।'
 "क्यों नहीं आता मम्मी ?'
 "बेटा जिनको प्यार होता है वही जन्म दिन  याद रखते हैं और फोन भी करते हैं ।तुम्हारे पापा के घर वालों को तुम लोगों से प्यार ही नहीं है तो फोन क्यों करेंगे । उन लोगो को तो तुम्हारा बर्थ डे याद भी नहीं होगा ।"
 "अरे बच्चों के मन में क्यों जहर भर रही है...बेटा मम्मी से पूछ जैसे वह हर साल याद करके अपने भाई,बहनों को बर्थ डे विश करती है आज तक कभी तुम्हारे चाचा, ताऊ ,बुआ आदि को विश किया है ?.. फिर उनसे उम्मीद क्यों करती है ?"
 "हाँ मम्मी पापा कह तो ठीक रहे हैं ।"
 "क्या ठीक कह रहे हैं....किया  करें न फोन, मैंने इन्हें रोका है क्या? "
 "हाँ मुझे याद नहीं रहता....पर मैं शिकायत भी तो नहीं करता ।...तुम्हारी यहाँ वाली बुआ तो हमेशा  हम सब के जन्म दिन पर फोन  करती  हैं , पर  क्या तुमने या तुम्हारी मम्मी ने  जानने की कोशिश की है कि  उनका या उनके बच्चों का जन्म दिन कब होता  है ?... बेटा प्यार पाने के लिए प्यार देना भी पड़ता है पर तुम्हारी मम्मी की समझ में यह कभी नहीं  आया ।'
 "आप ठीक कह रहे हैं पापा , हमें भी उन्हें विश करना चाहिए या फिर शिकायत नहीं करनी चाहिए ।'   

-पवित्रा अग्रवाल
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Wednesday, May 23, 2012

 लघु कथा
                        टी आर पी का चक्कर
                                                                पवित्रा अग्रवाल
 नन्दा ने टी. वी. खोला और खटाक से बन्द करते हुए बोली --" न्यूज चैनल वाले तो लगता है पागल हो गए हैं,कुछ और दिखाने को जैसे इनके पास है ही नहीं ।'
 "ऐसा क्यों कह रही हो ?'
 "तो और क्या कहूँ ?एक प्रोग्राम में गेर ने शिल्पा को चूम क्या लिया ,बस न्यूज में विस्तार से वही दिन में कई कई बार दिखाने का उन्हें मौका मिल गया ।'
 "लेकिन शिल्पा को देखो उसे तो कुछ भी गलत नहीं लग रहा बल्कि वह तो गेर की वकालत कर रही है कि गेर ने ऐसा भी क्या कर दिया जो भारतीय संस्कृति के नाम पर बवाल  मचाया जा रहा है।  वह एक अच्छे कॉज के लिए यहाँ आया है... हमें उस की कदर करनी चाहिए ..हाँ वह  थोड़ा वह बहक गए थे पर  हमारी संस्कृति में तो अतिथि देवो भव भी कहा गया है'...... क्या यह सब सही तर्क हैं  ?'
 "तुम बिलकुल सही कह रहे हो पर अभी मैं बात शिल्पा और गेर के सही या गलत होने की नहीं कर रही हूँ  । बात न्यूज चैनल्स की नीयत की कर रही  हूँ ।'
 "मैं समझा नहीं तुम क्या कहना चाहती हो ?'
 "मैं कहना चाहती हूँ कि गेर ने शिल्पा को एक बार चूमा ,उसे कितने प्रतिशत लोगों ने देखा होगा ? किन्तु चैनल्स अपनी टी आर पी बढ़ाने के लिए उस सीन को दिन में पचासों बार दिखा रहे है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग देखें ...क्या वह सीन बार बार दिखाए बिना न्यूज नहीं बन सकती ?'
 "सो तो है सब उसे भुनाने में लगे हैं ।''

-पवित्रा अग्रवाल

Monday, April 16, 2012

अय्याशी के अड्डे

    लघु कथा   

                        अय्याशी के अड्डे

                                                                              देवर प्रमोद मिठाई ले कर आए थे ...उनका चेहरा खुशी से दमक रहा था।
 "काहे की मिठाई है ?'
 "अरे भाभी जी तन्वी को बहुत अच्छी नौकरी मिल गई है ।'
 "कहाँ ?'
 "डैल में ,..शुरू मे ही पंद्रह हजार देंगे ।'
 "अच्छा,बहुत खुशी हुई सुन कर...बधाई ।कौल सेंटर में लगी है क्या ?'
 "हाँ '
 ."रात की ड्यूटी  रहेगी ?'
 "हाँ ड्यूटी तो रात की ही रहेगी...पर डर की कोई बात नहीं है। कंपनी की गाड़ी लेने व छोड़ने आएगी ।'
 "वो तो सभी कॉल सेंन्टर्स में यह व्यवस्था रहती है ।' कहते हुए मुझे तीन चार वर्ष पुरानी बात याद आ गई ।मेरी सहेली की बेटी को काल सेंटर में नौकरी मिली थी..मैं ने यह बात जब अपने इन्हीं देवर प्रमोद को बताई तो वह बुरा सा मुंह बना कर बोले थे--" अरे भाभी जी काल सैंटर तो अय्याशी के अड्डे होते हैं।'
 "अय्याशी के अड्डे ' शब्द सुन का मेरा मन आहत हुआ था ,मैं ने एक तरह से उसे डपटते हुए कहा था --"तुमने भी यह क्या घटिया शब्द स्तेमाल किया है।''
 "अरे भाभी जी आपकी बेटी तो काल सेंटर में नहीं है, आपको इतना बुरा क्यों लग रहा है ?'
 "मेरी बेटी न सही पर दूसरों की बेटियाँ तो वहाँ काम करती हैं ,इस तरह का कमेंन्ट करना अच्छी बात नहीं हैं। 
 "अरे भाभी जी आप नहीं जानती बाहर क्या क्या हो रहा है ।'
 मैं किसी बहस में नहीं उलझना चाहती थी अत: बात समाप्त करते हुए  कहा --" मैं तो बस इतना  जानती हूँ कि अच्छे बुरे लोग सब जगह होते हैं पर इस तरह की टिप्पणी करना अच्छी बात नहीं है।'
 आज वही प्रमोद अपनी बेटी के काल सेंन्टर में काम मिलने की खुशी में मिठाई बाँट रहे हैं ।मन कर रहा था उनसे पूछूँ कि काल सेंटर जब इतने खराब होते हैं तो अपनी बेटी को उसमें काम करने क्यों भेज रहे हैं ?'

                                                                        पवित्रा अग्रवाल 
    
पवित्रा अग्रवाल

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Friday, March 2, 2012

अगर-मगर घर ना तोड़ो

लघु  कथा
     
                                    
                                      अगर-मगर         
 
                                                                                  पवित्रा अग्रवाल
 "साब आज मुझे छुट्टी होना।'
 "क्यों,कुछ काम है ?'
 "हौ साब, बीबी पेट से है, अभी उस को जच्चगी के लिये दवाखाने में शरीक करा के आया हूँ।'
 "तुम को कितने बच्चे हैं ?'
 "ये तीसरा है साब।'
 "तुम्हारी शादी को कितने दिन हो गये ?'
 "अगले महीने तीन बरस हो जाते ।'
 "तीन बरस में तीन बच्चे ! अब आगे क्या सोचा है ?'
 "साब अल्ला के करम से बेटा भी है और बेटी भी।...मैं तो पिछली बार ही बीबी का आपरेशन कराने  की  सोचा था मगर अम्मी अब्बा नहीं कराने दिये और अब भी नको बोल रऐ।'
 "तुम कितने बहन भाई हो ?'
 "हम दस हैं साब ।'
 "सब पढ़ लिख के अच्छे रोजगार में लगे हैं ?'
 "हमारे अब्बा दर्जी का काम करते हैं ,खाने को ही ठीक से नहीं जुटा पाते थे अच्छी तालीम कहाँ से   देते,सब दो-चार क्लास पढ़े हैं, मै ही बारह क्लास तक पढ़ लिया बस।'
 "अब तुम तो कुछ सोचो, क्या तुम नहीं चाहते कि तुम्हारे बच्चों की परवरिश तुम से बेहतर तरीके से हो ?' 

" चाहता तो हूँ मगर घर वाले......'
 "देखों ये अगर मगर छोड़ो और कुछ फैसले अपने आप लेना सीखो ।'
 "शुक्रिया साब,आप सही समय पर मशवरा दिये ...इस बार मैं बीबी का आपरेशन भी करा देता ।'
        
लघु कथा        
                 
                           
             घर ना तोड़ो 
                                            पवित्रा अग्रवाल     मैंने माली से कहा-"बालय्या देखो गार्डन में कुछ  पेड़ बड़े होकर बहुत फैल गये हैं..जब भी तेज हवा चलती है उन से उलझ कर टेलीफोन के वायर टूट जाते हैं..फिर फोन ठीक होने में पाँच-सात दिन लग जाते हैं।..इस बीच बहुत परेशानी होती है।...इन पर बैठ कर कबूतर भी बहुत गंदगी फैला रहे हैं।तुम देखो लॉन की घास को कितना गंदा कर दिया है।तुम आज सब से पहले तो टेलीफोन वायर के आसपास की और लॉन के उपर की कुछ शाखाएं काट दो।'
      माली ने पेड़ पर एक नजर डाली और बोला-"अम्मा झाड़ पर बहुत सी चिड़ियों के घराँ हैं..उसमें उनके के अंड़े और बच्चे भी होंयेंगे...कटिंग किये तो उन के घराँ टूट कर गिर जाते...अम्मा रहने दो न उनको बेघर किये तो पाप लगता ।'
   माली की बात सुन कर मुझे एक झटका सा लगा।चिड़ियों का घर टूटने और उनके बेघर होने की उसे इतनी चिंता है।..अभी कुछ दिन पहले ही जब उसने अपने बीबी - बच्चों को बेघर कर के दूसरी औरत को घर मे बैठाया था तब उसे अपने घर के टूटने का ख्याल एक बार भी नही आया ।  
       
     ------                    


--
-पवित्रा अग्रवाल
 

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Sunday, February 5, 2012

मजबूरी

   लघु कथा 

                                  मजबूरी
                                        पवित्रा  अग्रवाल                                  
           फूला ने नंदा से कहा-"भाभी जी आपके घर में पार्वती काम करती है न...आपको मालुम है वह कौन जात है ?'
        "नहीं'
       "वह जाति से महतर है।'
       अन्दर काम कर रही पार्वती यह बात सुन कर बाहर भागती हुई आई। उसे देखते ही फूला एक दम से सकपका गई।
        पार्वती आक्रामक स्वर मे बोली -"फूला यदि मै महतर हूँ तो तू ही कौन सी बनियां या  बामन  है ?...तू भी तो चमारिन है।'
       "हाँ मै चमार हूँ लेकिन अपनी जाति छिपा कर काम नही करती।तुझ से पहले मैं ही यहाँ काम करती थी।पूछ ले भाभी जी से मै ने काम शुरू करने से पहले ही अपनी जाति बता दी थी। वो तो मै बीमारी के कारण एक महीना काम पर नही आ पायी तो भाभी जी ने तुझे रख लिया।'
       "जाति तो मैं ने भी ना छिपाई है। भाभी जी ने पूछा नही ,मैं ने बताई नहीं । यदि पूछतीं   तो  मैं झूठ थोड़े ही बोलती ।...मै जाति से भले ही मेहतर हूँ पर मेरे घर मे मेहतर का काम कोई भी नही करता। मेरा आदमी तो कम्पाउडर  है फिर भी मैं यहाँ आकर पहले साबुन से हाथ-पैर धोती हूँ तब काम करती हूँ । '
       नंदा सोच रही थी शहर मे आजकल कामवालियों की इतनी किल्लत है कि मिलती ही नहीं और मुझ से काम होता नही।...काम कराना अपनी मजबूरी है...फिर जाति पूछ के क्या फायदा ?...फूला और पार्वती को बहस मे उलझा देख कर नन्दा ने कहा - "पार्वती देख मैं तो यह जात - पात मानती नही किन्तु मेरी सास मानती हैं। वह अभी मंदिर से वापस आ रही होंगी, उन्होंने तुम्हारी बातें सुन ली तो तुझे यह काम छोड़ना पड़ेगा (और फिर सब काम मेरे सिर पड़ेगा) इसलिए जल्दी से यह बहस छोड़ कर अपने काम मे लग जा।'
 पार्वती फूला को खा जाने वाली नजरो से घूरती हुइ अंदर चली गई।


                                                             घरोंदा 
                                                   4-7-126  इसामियां बाजार
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Thursday, January 5, 2012

देश का दुश्मन

लघु कथा      

                         देश का दुश्मन
                                                                           पवित्रा अग्रवाल   

    किशोर वय के बच्चे ने अपनी मम्मी से पूछा -- "मम्मी मैं ने सुना हे पापा किसी आतंकवादी की   तरफ से मुकद्दमा  लड़ कर उस को बचाने का प्रयास कर रहे हैं ?'
 "अच्छा ?'
 "आपको नहीं पता ? '
 "मुझे क्या पता ...मुझे बता कर वह  मुकद्दमा  लड़ते हैं क्या ?'
 "पर मुझे पता है, वह देश में आंतक फैलाने वाले एक मुजरिम का केस लड़ रहे हैं ।'
 "हो सकता है ।'
 "पर क्यो मम्मी ?...हमारे देश में आतंक फैला कर सैंकड़ों की जान लेने वाले को पुलिस बड़ी   मुश्किल से दूसरे देश से पकड़ कर लाइ है,उसके बचाव में केस लड़ना क्या गलत नहीं ?'
 "बेटा वकीलों का तो काम ही ये होता है,जिसके वकील होते हैं उसे बचाने का प्रयास करते हैं,भले ही  वह दोषी हो।'
 "मम्मी ये तर्क मेरे गले नहीं उतर रहा है। मेरी समझ में एक देशद्रोही को सजा से बचाने वाले को    देश प्रेमी तो नहीं कहा जा सकता ।'

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