Friday, March 2, 2012

अगर-मगर घर ना तोड़ो

लघु  कथा
     
                                    
                                      अगर-मगर         
 
                                                                                  पवित्रा अग्रवाल
 "साब आज मुझे छुट्टी होना।'
 "क्यों,कुछ काम है ?'
 "हौ साब, बीबी पेट से है, अभी उस को जच्चगी के लिये दवाखाने में शरीक करा के आया हूँ।'
 "तुम को कितने बच्चे हैं ?'
 "ये तीसरा है साब।'
 "तुम्हारी शादी को कितने दिन हो गये ?'
 "अगले महीने तीन बरस हो जाते ।'
 "तीन बरस में तीन बच्चे ! अब आगे क्या सोचा है ?'
 "साब अल्ला के करम से बेटा भी है और बेटी भी।...मैं तो पिछली बार ही बीबी का आपरेशन कराने  की  सोचा था मगर अम्मी अब्बा नहीं कराने दिये और अब भी नको बोल रऐ।'
 "तुम कितने बहन भाई हो ?'
 "हम दस हैं साब ।'
 "सब पढ़ लिख के अच्छे रोजगार में लगे हैं ?'
 "हमारे अब्बा दर्जी का काम करते हैं ,खाने को ही ठीक से नहीं जुटा पाते थे अच्छी तालीम कहाँ से   देते,सब दो-चार क्लास पढ़े हैं, मै ही बारह क्लास तक पढ़ लिया बस।'
 "अब तुम तो कुछ सोचो, क्या तुम नहीं चाहते कि तुम्हारे बच्चों की परवरिश तुम से बेहतर तरीके से हो ?' 

" चाहता तो हूँ मगर घर वाले......'
 "देखों ये अगर मगर छोड़ो और कुछ फैसले अपने आप लेना सीखो ।'
 "शुक्रिया साब,आप सही समय पर मशवरा दिये ...इस बार मैं बीबी का आपरेशन भी करा देता ।'
        
लघु कथा        
                 
                           
             घर ना तोड़ो 
                                            पवित्रा अग्रवाल     मैंने माली से कहा-"बालय्या देखो गार्डन में कुछ  पेड़ बड़े होकर बहुत फैल गये हैं..जब भी तेज हवा चलती है उन से उलझ कर टेलीफोन के वायर टूट जाते हैं..फिर फोन ठीक होने में पाँच-सात दिन लग जाते हैं।..इस बीच बहुत परेशानी होती है।...इन पर बैठ कर कबूतर भी बहुत गंदगी फैला रहे हैं।तुम देखो लॉन की घास को कितना गंदा कर दिया है।तुम आज सब से पहले तो टेलीफोन वायर के आसपास की और लॉन के उपर की कुछ शाखाएं काट दो।'
      माली ने पेड़ पर एक नजर डाली और बोला-"अम्मा झाड़ पर बहुत सी चिड़ियों के घराँ हैं..उसमें उनके के अंड़े और बच्चे भी होंयेंगे...कटिंग किये तो उन के घराँ टूट कर गिर जाते...अम्मा रहने दो न उनको बेघर किये तो पाप लगता ।'
   माली की बात सुन कर मुझे एक झटका सा लगा।चिड़ियों का घर टूटने और उनके बेघर होने की उसे इतनी चिंता है।..अभी कुछ दिन पहले ही जब उसने अपने बीबी - बच्चों को बेघर कर के दूसरी औरत को घर मे बैठाया था तब उसे अपने घर के टूटने का ख्याल एक बार भी नही आया ।  
       
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-पवित्रा अग्रवाल
 

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4 Comments:

At March 2, 2012 at 4:47 AM , Blogger Shikha Kaushik said...

dono laghukathayen bahut prenadayak hain .aabhar YE HAI MISSION LONDON OLYMPIC !

 
At March 2, 2012 at 8:28 AM , Blogger Sunil Kumar said...

अगर मगर सार्थक कथा और घर ना तोड़ो संवेदनशील रचना बधाई तो लेनी ही पड़ेगी.......
(कृपया वर्ड वरिफिकेसन हटा दीजिये)

 
At May 14, 2012 at 9:03 AM , Blogger http://bal-kishor.blogspot.com/ said...

shikha ji
aap ko meri dono laghu kathaye preranadayak lagi jan kar achcha laga ,thanks.vilamb ke liye khed hai.

 
At May 14, 2012 at 9:05 AM , Blogger http://bal-kishor.blogspot.com/ said...

Dhanyavad sunil ji.

 

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