Monday, December 1, 2014

आरोप

  
लघु कथा

                          आरोप

                                                पवित्रा अग्रवाल


            सुजाता की बेटी, भताजी के लिए दो जोड़ी फ़्रॉक और गोल्ड प्लेटिंग की पायल लाई थी।
           सुजाता को मालुम है उसके ससुराल वाले थोड़े लालची स्वभाव के हैं अत: उसने डाँटते हुए कहा "इतना सब लाने की क्या जरूरत थी,हम तेरा कुछ नहीं रखेंगे।'
           किन्तु उनकी यह बात छोटी बहू को बुरी लग गई।वह अपने पति से कह रही थी -" मम्मी जी की  यह बात मुझे अच्छी नही लगती।हमेशा अपनी बेटी को ही पचती हैं... इस बार वह हमारी बेटी के लिये ।फ्राक व पायल लाई हैं तो मम्मी जी उनको डाँट रही थीं कि क्यो लाई।....मै उनका रख तो नही लूँगी। जितना लाई है उस से ज्यादा का ही दूँगी।'
        "कोई कुछ लाता है तो एक बार को मना तो किया ही जाता है न।तुम यदि मम्मी की बात को इस दृष्टि से देखोगी तो तुम्हे कुछ भी गलत नही लगेगा...टेक इट इजी यार।'
        बहू की बात सुन कर सुजाता का मन कुछ आहत हुआ ।
 अगली बार सुजाता की दूसरी बेटी हिल स्टेशन घूम कर आई थी। वह अपने भतीजे-भतीजियों के लिये कुछ न कुछ लाई थी।बड़ी भाभी मीता का बेटा बड़ा हो चुका था और विदेश मे था तो वह भाभी के लिये साड़ी ले आई थी।बच्चे तो बुआ से उपहार पा कर खुश हो गए किन्तु मीता साड़ी लेने को तैयार नही थी।वह बोली -  "मै आपकी लाई साड़ी कैसे ले सकती हूँ ...आप हमारी छोटी नन्द हैं ,छोटों को तो दिया जाता है... लिया थोडे ही जाता है।'
       बेटी बहुत मायूस हो गई थी -"छोटा, बड़ा कुछ नही होता भाभी।क्या हमेशा लेते ही रहना चाहिए ... कभी हमारा भी तो देने को दिल करता है। मै यह साड़ी बड़े मन से आपके लिये लाई हूँ,आपको लेनी ही होगी।'
      सुजाता ने कहा-  " इतने प्यार से लाई है तो रख लो न मीता।'
     -"मम्मी जी"आप हमेशा अपनी बेटियों को ही पचती हैं ,अब भी उनकी ही तरफ ले कर मुझ से साड़ी लेने को कह रही हैं।'
        बहू का आरोप सुन कर सुजाता सकते मे आ गई।वह सोचने लगी यदि बेटी को किसी के लिये कुछ न लाने को कहूँ तब भी बेटी को पचने का आरोप ....बेटी के लाने पर उसे रख लेने को कहूँ तब भी बेटी को पचने का आरोप....आखिर कौन सा आरोप सही है...या सास होना ही अपने आप मे एक आरोप है ?      


-पवित्रा अग्रवाल

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Saturday, November 1, 2014

कल और आज



लघु कथा
                                                    
                                                  

                  कल और आज
                                                                                              
                                                               पवित्रा अग्रवाल
      
         

               "अन्ना कल तक तो इस ड्राइंग रूम में आपके, मंत्री जी के साथ बड़े-बड़े फोटो, फ्रेम किये हुए लटके   थे.....आज सब कहाँ गये ?'
            - "तुम्हें नही मालुम ? मंत्री जी एक बहुत बड़े घुटाले में फँस गये हैं। उन्हें दूसरे राज्य की पुलिस   पकड़ कर ले गयी है।जिस मंत्री से निकटता दिखा कर लोग पुलिस पर रौब मारते थे वही मंत्री जी स्वंय  को पुलिस से नही बचा पाये...पुलिस वाले उन के  साथ मेरा फोटो देख कर मुझे भी उनका सहयोगी न  समझ लें इसी लिये सब फोटो हटा दिये हैं।'



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-पवित्रा अग्रवाल
 
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Wednesday, October 1, 2014

रघु कुल रीति

लघु कथा

                                          रघु कुल रीति

                                                                  पवित्रा अग्रवाल
  
        रामायण के अखंड पाठ की समाप्ति के बाद दादी को फुरसत से बेठे देख कर तनुजा ने उनसे पूछा  -- "दादी एक बात बतायें, क्या राम सचमुच बहुत अच्छे थे ?'
 "अच्छे थे तभी तो उन्हें भगवान का दर्जा प्राप्त है।'
 "दादी राम की कुछ अच्छी बातें बताइये।'
 "तनु वह वीर और पराक्रमी तो थे ही ।पितृ भक्त भी थे ,पिता के वचन को निभाने के लिये वह राज सुख और राज मोह दोनो छोड़ कर चौदह वर्ष को वन वास पर चले गये थे।तुम्हें पता है न कि अपने पिता के किस वचन को निभाने के लिये राम को वन जाना पड़ा था ?'
 "हाँ दादी पता है। टी.वी. पर जो रामायण प्रसारित होता था न उसी में देखा था कि एक बार कैकैयी ने युद्ध में दशरथ जी की मदद की थी तब खुश हो कर उन्हों ने केकैयी को उनकी दो इच्छायें पूरी करने का वचन दिया था...और केकैयी ने राम के राज तिलक से पहले दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिये राजगद्दी और राम के लिये वनवास माँग लिया था।'
 "हाँ बेटा और राम अपने पिता के इसी वचन को पूरा करने के लिये वन चले गये थे,एक आज के बच्चे हैं जो माँ बाप को तो कुछ समझते ही नहीं।'
  "आज की बात अभी छोड़ो दादी ...मुझे तो अभी राम के बारे में ही आप से कुछ और जानना है। दादी दुख सुख में साथ निभाने  का एक वचन तो उन्होंने शादी के समय सीता को भी दिया होगा ?'
 "हाँ दिया था तभी तो रावण से सीता को मुक्त कराने के लिये उन्होंने रावण से युद्ध कर के सीता की रक्षा की थी ।'
 "क्या दादी उन्होंने रावण के चंगुल से तो सीता को छुड़ा लिया पर बाद में क्या किया ?एक धोबी के कहने पर उन्होने अपनी गर्भवती पत्नी सीता को जंगलों में अकेला भटकने को छोड़ दिया था ।'
 "हाँ बेटा कभी कभी राजा को राजधर्म निभाने के लिये अपने व्यक्तिगत सुखों का भी त्याग करना पड़ता है।'
 "वजह कोई भी हो दादी पर उन्होंने अपनी पत्नी को दिया गया वचन तो तोड़ा ही न।वह अपना वचन निभाने के लिये राज सिंहासन भी तो छोड़ सकते थे।'
 उसकी बातों से दादी झल्ला कर बोली -"बस अब तू जा... तेरी इन बातों का मेरे पास कोई जवाब नहीं है।'     


--
-पवित्रा अग्रवाल
 
 
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Tuesday, September 2, 2014

फिजूलखर्ची

लघु कथा   

                              
         फिजूलखर्ची    
                                                                             
                                                                    पवित्रा अग्रवाल
        कुछ दिन के लिये बेटे के पास रहने आये पिता ने सुबह उठते ही न्यूज पेपर्स और इंगलिश मैगजीन्स के बीच कुछ ढ़ूंढ़ते हुए पुत्र से पूछा--"तुम कोई हिन्दी का समाचार पत्र नहीं लेते ?'
      "अरे पापा हिन्दी से कब किस का भला होंने वाला है ? जिन्दगी में कुछ बनने के लिये इंगलिश जरूरी है फिर घर में दो इंगलिश के पेपर आते ही हैं, साथ में एक हिन्दी पेपर भी लेना क्या फिजूल खर्ची नहीं होगा ?'
      "बेटा कैरियर के हिसाब से तुम्हारी बात सही हो सकती है किन्तु हिन्दी पढ़ना या जानना कैरियर में बाधक तो नहीं हैं ।..यदि हम हिन्दी भाषी ही अपनी भाषा की इस तरह उपेक्षा करेंगे तो हमारे बच्चे अपनी भाषा पढ़ना ही नहीं बोलना व समझना भी भूल जायेगे...रही बात फिजूलखर्ची की तो बेटा एक - दो  पीजा की कीमत में एक महीने का समाचार पत्र तो आ ही जाता है।'
      "हाँ पापा आप ठीक कह रहे हैं,आगे से घर में एक हिन्दी का पेपर जरूर आयेगा ।'

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-पवित्रा अग्रवाल
 

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Friday, August 1, 2014

प्राणी रक्षक


 लघु कथा
                                  प्राणी रक्षक
                                                                           पवित्रा अग्रवाल

 पेरा रामू लुटा पिटा सा घर पहुँचा ।उसे देखते ही उसका बेटा चहका - "अरे बाबा आज तो नाग पंचमी हैं खूब कमाई हुई होगी ...आज तो पेट भर अच्छा खाना मिलेगा न ?'
 सपेरा चुप रहा ।
 "बाबा आप चुप क्यों हैं ? ...साँप की पिटारी भी आपके हाथ में नहीं है,क्या हुआ बाबा ?'
 "आज का दिन बहुत खराब गया बेटा ।साँप की पिटारी प्राणी रक्षक समिति के सदस्यों ने छीन ली ।'
 "क्यों बाबा ....वो उसका क्या करेंगे ?'
 "वो सांपों को जंगल में ले जा कर छोड़ देंगे ।वो कह रहे थे हम अपने धंधे के लिये सांपों को कष्ट देते हैं, जो गलत है ।'
 "उनकी यह बात तो गलत है बाबा।आपने उनसे कहा नहीं कि जानवरों पर इतनी दया आती है तो बकरीद पर कटने वाले उन लाखों निरीह बकरों को कटने से रोक कर दिखायें जिन्हें उस दिन काटा जाता है ।...सांप तो फिर भी काट कर आदमी की जान ले लेता है पर ये बकरे तो ..।'
 "क्या कहता बेटा उन्हों ने कुछ बोलने ही नहीं दिया वो तो पुलिस बुलाने की धमकी दे रहे थे "

-पवित्रा अग्रवाल
 

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Tuesday, July 15, 2014

सौतेला व्यवहार

     

लघु कथा


                  सौतेला व्यवहार

                                                                             पवित्रा अग्रवाल

         
 बार बालायें आक्रोश में थीं---" हम बार में डांस करते हैं तो क्या गलत करतें हैं ?'
 "डाँस करना गलत नहीं हैं,अश्लील हरकतो कें साथ डांस करना गलत हैं।.. आप लोगों पर यह भी आरोप है कि आप सब बहुत कम कपड़ों में डांस करती हैं।''
 "पत्रकार बाबू यह आरोप हरेक के लिये सही नही है,हाँ कुछ ऐसा भी करती होंगी पर हमारे दर्शक आम आदमी नहीं हैं,न हम पब्लिक प्लेसेज में ऐसा करते हैं ।एक बार में  बन्द जगह में लिमिटेड लोगों के बीच हम नाचते हैं और हमारे दर्शक सब एडल्ट होते हैं बच्चे नहीं...''
 "देखिये गलत तो गलत हैं..'
 "पहले मुझे बात तो खत्म करने दीजिये, ठीक है हम जो करते हैं वह सही नहीं है किन्तु टीवी पर खुले आम जो वीडियो एलबम दिखाये जा रहे हैं उनकी बालायें वस्त्रों में, हरकतों में हम से कहाँ कम हैं ? ....क्या मैं गलत कह रही हूँ ? '
 "नहीं आप की बात भी गलत नहीं है ।'
 दूसरी बार बाला ने कहा--"फिल्मों में जो बैडरूम सीन दिये जा रहे हैं या जो डांस परोसे जा रहे हैं, वह पूरे देश में बच्चें बूढ़े सभी देख रहे हैं ।सच कहें तो अपने परिवार के साथ उन दृश्यों को देखते हुए हम भी शर्म से पानी पानी हो जाते हैं । उन्हें रोक कर दिखायें... पर उन पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है, बस बार बालाओं के पीछे पड़े हैं।हमारी रोजी रोटी छीन रहे हैं...कुछ को वैश्या वृत्ति की ओर धकेल रहे हैं ...क्या यह सौतेला व्यवहार नहीं है ?"
 
पवित्रा अग्रवाल
 
 

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Friday, June 6, 2014

खतरा

लघु कथा   

                       खतरा
                                                                 
                                                   पवित्रा अग्रवाल


 दहेज में कार ले कर आई पत्नी ने अपने पति से कहा "सुनो हम भी  एक ड्राइवर रखलें ?'
    "तुम्हारे घर में कई कारें थीं,तुमने कार चलाना क्यों नही सीखा ?'
     "कई कारें थीं तो कई ड्राइवर भी तो थे...कार चलाना सीखने की कभी जरूरत ही महसूस नही हुई...फिर भी मैं ने सीखनी चाही थी  पर पापा मम्मी ने नहीं सीखने दी ."

       क्यों ?
      "भाई ने सीखी थी। एक बार उसका एक्सीडेंट हो गया ...ये समझो कि वह मरते मरते बचा था,     बस  तब से उस की ड्राइविंग पर भी पाबंदी  लगा दी गई थी और मुझे भी सिखाने से मना कर दिया  गया  ।'
        "एक्सीडेंट क्या ड्राइवर से नही हो सकता ?'
        "हो तो सकता है किन्तु खतरा  अक्सर आगे बैठने वाले को ही होता है,हाथ-पैर टूटेंगे या मरेगा तो ड्राइवर  मरेगा ।'


 
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Thursday, May 1, 2014

शुभ दिन

लघु कथा    

                           शुभ दिन
       
                                                 पवित्रा अग्रवाल
 

         रमेश आज फिर नौकरी के लिए साक्षात्कार देने जा रहा था, लेकिन उसके मन में कोई उत्साह नहीं था। साक्षात्कार देने का सिलसिला तो पिछले एक वर्ष से चल रहा है। हर जगह सर्वप्रथम यही पूछा जाता है कि काम करने का अनुभव कितना है। जब कहीं काम मिलेगा तभी तो अनुभव होगा न ।
       उसके जाने से पहले ही मां ने मंदिर का प्रसाद देते हुए कहा, "बेटा पंडित जी कह रहे हैं आज का दिन तुम्हारे लिए बहुत शुभ है।...वे तुम्हारे लिये विशेष रूप से जाप कर रहे हैं...तुम्हें ये नौकरी मिल जाएगी।'
       उसने बहुत श्रद्धापूर्वक प्रसाद खाया और साक्षात्कार के लिए चला गया।

     वह बहुत उत्साहित होकर लौटा था -- "मां मुझे नौकरी मिल गई है। कल से काम पर जाना है। प्राइवेट कंपनी है।  उसके एम.डी. ने कहा है -- 'हम एक्सपीरियेंस को उतना महत्व नहीं देते। हमें हमेशा सिन्सीयर, पंक्चुअल, हार्डवर्कर व्यक्ति की तलाश रहती है। यदि तुम हमारी इन एक्सपेक्टेशन्स पर खरे उतरे तो जल्दी ही तुम्हें प्रमोशन भी दे दिया जाएगा।'
      नौकरी का समाचार सुनते ही मां खुश हो गई। उसी समय दौड़ी-दौड़ी मिठाई लेकर पंडित जी के पास गई। पंडित जी ने पत्री देख कर कहा, "कल-परसों दो दिन शुभ नहीं हैं...तीसरा दिन बहुत शुभ है। बच्चे को उसी दिन काम पर भेजना।'
   तीसरे दिन टिफिन लेकर रमेश काम पर गया और जल्दी ही लौट आया।
 चौंक कर मां ने पूछा- "रमेश इतनी जल्दी क्यों लौट आया ?'
       मुंह लटकाए हुए रमेश ने कहा, "दो दिन बाद गया था न, उन्होंने दूसरा रख लिया ।.

    
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Tuesday, April 1, 2014

समाज सेवा

लघु कथा  

          समाज सेवा

                                    पवित्रा अग्रवाल 
                                       
    सुधा ने अपने पति से कहा"--" देखना इस अखवार में मैडम का फोटो क्यों छपा है ?'
 "तुम जानती हो इन मैडम को ?'
 "हाँ इन के सिलाई कढ़ाई सेंन्टर पर ही तो मैं काम करती थी।'
 "अच्छा तो वो यही मैडम हैं।..इन्हों ने समाज में गरीब महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए के लिए  बहुत काम किया है ,इस  लिए उनका सम्मान किया गया है।'
 "जरा पढ़ कर तो बताना  कि इन्हों ने महिलाओं के लिए ऐसा क्या किया है जिसकी वजह से उनका  सम्मान किया गया है और वो समाचार फोटो के साथ अखवार में छपा है।'
 "इस में लिखा है गरीब महिलाओं को रोजगार देने के लिए इन्हों ने शहर में सब से पहला सिलाई  कढ़ाई सेन्टर खोला था।'
 "हाँ सेन्टर तो इन्होंने खोला था और बहुत सी महिलाएं उस में काम भी करती थीं पर उनका उद्देश्य  महिलाओं की हालत सुधारना या उन्हें रोजगार देना नहीं था ।''
 "तो  उनका उद्देश्य क्या था ?''
 " उनका उद्देश्य था पैसा कमाना ।हम सब से सस्ते दामों पर कढ़ाई करा कर उन्हें ऊँचे दामों पर  बेचना । ... यह मैडम खूब मुनाफा कमाती थीं ।''
 "सभी ऐसा करते हैं.. इसमें बुरा क्या है ?''
 -"मुनाफा कमाना बुरी बात नहीं हैं...व्यापार में सभी  कमाते हैं पर उस को समाज सेवा  के रूप  में  भुनाना बेइमानी है।...ऐसे तो फिर हर व्यापारी  समाज सेवी है क्यों कि व्यापार चलाने के लिए उसे  नौकर तो रखने ही पड़ते हैं 
।''

                                                                ------


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-पवित्रा अग्रवाल

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Monday, March 3, 2014

अनुमान

लघु कथा 

           
                अनुमान
 
                                                      पवित्रा अग्रवाल          

         
 बिग बाजार में प्रवेश करते ही  वर्मा जी की नजर अपने परिचित राम बाबू पर पड़ी तो वह खुश होते हुए उनके पास पहुँच गये ---"नमस्ते राम बाबू ,अकेले अकेले क्या शोपिंग हो रही है ?'
 "नमस्ते,नमस्ते वर्मा जी , असल में हम दोनों एक सप्ताह बाद तीन महिने के लिए बेटे के पास अमेरिका जा रहे हैं,बस उसी की कुछ तैयारी चल रही हैं ?'
 "अच्छा तो आप दादा बनने वाले हैं ?'
 चौंकते हुए राम बाबू बोले -"हाँ, पर आपको कैसे पता ?'
 वर्मा जी के मुँह से निकलने को था कि अक्सर ऐसा ही होता है किन्तु अपने को संभालते हुए बोले   --"बस ऐसे ही"आपके चेहरे पर बिखरी खुशी देख कर अनुमान लगाया था पर मेरा अनुमान तो सही निकला ।.. एडवान्स  में मेरी बधाई स्वीकार करिये ।'    


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-पवित्रा अग्रवाल
 
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Saturday, February 1, 2014

हक

लघु कथा      
                      
  हक       
                              
                            पवित्रा अग्रवाल



       बेटा बहू दोनो नौकरी करते हैं।बहू कुछ पहले आ जाती है।बेटा देवेन्द्र कुछ देर बाद आता है। रोज देवेन्द्र आते ही अपनी पत्नी से फरमाइश करता है  -"सुषमा एक कप गरम गरम चाय पिला दो।'
      माँ ने कई बार बहू को बडबड़ाते हुये सुना था -"एक तो आफिस से थक कर आओ,आकर घर का काम धंधा सम्हालो। कोई ऐसा नही कि एक कप चाय भी पिला दे।'
      बहू को बड़बड़ाते सुना तो माँ ने सोचा चलो चाय मै बना दिया करूँगी।तब से बेटे के आते ही चाय माँ बनाने लगी।आज भी बेटे के आने पर माँ ने दरवाजा खोला और चाय बनाने के लिये रसोई मे चली गई। तब बहू चाय का पानी भगोने मे डाल रही थी।माँ ने कहा - "सुषमा देवेन्द्र आगया है,तू उसके पास जा मै चाय बना कर लाती हूँ ।''
          घूर कर देखते हुए बहू ने कहा  "अपने घर मे अपने पति के लिये एक कप चाय बनाने का हक भी मुझे नही है क्या ?'
         माँ बहू का मुंह देखती रह जाती है,वह पूछना चाहती है कि आखिर वह चाहती क्या है किन्तु नही पूंछ पाती ।  बेटा अभी अभी  घर मे घुसा है और वह नही चाहती कि सास - बहू की चिक चिक से वह आहत हो।
                              
     
    
        पवित्रा अग्रवाल

   ईमेल -  agarwalpavitra78@gmail.com      

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