बदलाव
लघुकथा
बदलाव
पवित्रा अग्रवाल
पुरानी कामवाली अपनी बेटी लक्ष्मी के साथ छोटी बेटी की
शादी का कार्ड देने आई थी. करीब 15 वर्ष बाद मैंने उनको
देखा था। लक्ष्मी को सलवार सूट पहने देखा तो पुरानी बात याद
आ गई. मैंने उसे सलवार सूट देना चाहा था तो बोली-' अम्मा
यहाँ तो इसे संडास साफ करने वाली पहनती हैं.’
'अरे मैं भी तो पहनती हूँ तो क्या मैं ...?
‘आपकी बात दूसरी है अम्मा ,हम तो यहाँ आंध्र के ही हैं,यहाँ
हमारे लोगों में ऐसी ड्रेस कोई नहीं पहनता ।हमारे लोगों में साड़ी
या लंहगा –दुपट्टा चलता है, ये पहने तो लोगाँ बातां बनाते '
बात उसकी भी गलत नहीं थी पर आज मैं पूछ बैठी --
'अरे लक्ष्मी तूने आज सलवार सूट कैसे पहन लिया ?'
' अरे अम्मा अब तो हमारे लोगों में भी सब पहन रहे हैं...आपके
पास कुछ हों तो अब मुझे दे दो '
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मेरे ब्लोग्स
Labels: लघुकथा
3 Comments:
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (01-09-2021) को चर्चा मंच "ज्ञान परंपरा का हिस्सा बने संस्कृत" (चर्चा अंक- 4174) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
यही है संस्कृति बदलती है पर हर जगह अनुपात भिन्न होता है ।
सुंदर लघुकथा।
समय के साथ चीजें बदल ही जाती हैं.. सुंदर लघु-कथा...
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