लघुकथा
पवित्रा अग्रवाल
‘ अरे तू पागल हो गई है क्या ? इस बच्चे को पास रख कर हम क्या करेंगे ? समाज दस तरह की बातें बनायेगा और बच्चे को भी बहुत कुछ सहना पड़ेगा ’
‘समाज हमारी किस गलती के लिए बातें बनाएगा ? क्या यह हमारी नाजायज औलाद है या हमारे किसी पाप की निशानी है ?’
‘तू समझती क्यों नहीं .हम कुछ नया नहीं कर रहे हैं ,युगों से ऐसा ही होता रहा है ,ऐसे बच्चों को किन्नर आकर अपने साथ ले जाते हैं ,बच्चो को पता भी नहीं चलता कि वह किस की औलाद हैं .’
‘अभी तुमने कहा कि हमारे साथ रहा तो इस बच्चे को भी बहुत झेलना पड़ेगा’...हमारे साथ नहीं रहा तो क्या उसे कुछ भी नहीं सहना पड़ेगा ?..अपने पडौस में देख लो रमेश जी की बेटी के दोनों हाथ नहीं है पर उसने पैरों की उँगलियों से लिख कर दसवीं पास करली है .स्कूल में उसे अपाहिज होने की वजह से बहुत झेलना पड़ता है .मेरे मामा का बेटा जन्म से अँधा है पर वह उसका पालन कर रहे हैं...
पर मेरा बच्चा तो हर तरह से स्वस्थ है ,क्या हुआ जो वह लड़का या लड़की की श्रेणी में न आकर किन्नर है.मैं उसे अच्छी शिक्षा दूँगी ,उसका अच्छा भविष्य बनाऊंगी .मैं उसे तालियाँ बजा कर घर घर से उगाही करने के लिए नहीं छोडूंगी.भले ही सब मुझे पागल कहें पर यह मेरा अंतिम फैसला है .’
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1 Comments:
Kaash aisa pagalpan karne ki aur logo mai bhi himmat aay . nice story
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