Tuesday, August 31, 2021

बदलाव

 लघुकथा 


 बदलाव 

            पवित्रा अग्रवाल 

 पुरानी  कामवाली अपनी बेटी लक्ष्मी के साथ छोटी बेटी की

   शादी का कार्ड देने आई थी. करीब 15 वर्ष बाद मैंने उनको

 देखा था। लक्ष्मी को सलवार सूट पहने देखा तो पुरानी बात याद

 आ गई. मैंने उसे सलवार सूट देना चाहा था तो बोली-' अम्मा

 यहाँ तो इसे संडास साफ करने वाली पहनती हैं.’

 'अरे मैं भी तो पहनती हूँ तो क्या मैं ...?

‘आपकी बात दूसरी है अम्मा ,हम तो यहाँ आंध्र के ही हैं,यहाँ

 हमारे लोगों में ऐसी ड्रेस कोई नहीं पहनता ।हमारे लोगों में साड़ी

 या लंहगा –दुपट्टा चलता है, ये पहने तो लोगाँ बातां बनाते  '

बात उसकी भी गलत नहीं थी पर आज मैं पूछ बैठी --

 'अरे लक्ष्मी तूने आज सलवार सूट कैसे पहन लिया ?'

' अरे अम्मा अब तो हमारे लोगों में भी सब पहन रहे हैं...आपके

 पास कुछ हों तो अब मुझे दे दो '

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Thursday, December 24, 2020

हर्जाना

 लघुकथा 

                       हर्जाना

                                      पवित्रा अग्रवाल

   "सुनो मुन्नी तो पहले से ही बहुत बीमार थी ...डाक्टर भी जवाब दे चुके थे ।मर गई तो तुम ने डाक्टरों से मार पीट क्यों की ?....अब चले गए न वो हड़ताल पर ।'
"हमारी मुन्नी तो चली गई, अब वो कहीं भी जाएँ , हमें क्या फरक पड़ता है ?'
"पर दूसरे मरीजों को फरक पड़ता है । इलाज न हो पाने से मरने वालों की संख्या कितनी बढ़ जाएगी, इसका अंदाजा तुम्हें है ?'
"अरी चुप्प ,तूने दुनिया भर का ठेका ले रखा है क्या ?..डाक्टर पर लापरवाही का इल्जाम लगा के मारपीट करने से हो सकता है हमें कुछ हर्जाना मिल जाये .'              

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Sunday, November 29, 2020

आँगन से राजपथ -- मेरी पाँचवी पुस्तक

 

 


लघुकथा

                       हाँ मैं पागल हूँ 
                                                                 पवित्रा अग्रवाल

     ‘ 
 अरे तू पागल हो गई है क्या ? इस बच्चे को पास रख कर हम क्या करेंगे ? समाज दस तरह की बातें बनायेगा और बच्चे को भी बहुत कुछ सहना पड़ेगा ’
       ‘समाज हमारी किस गलती के लिए बातें बनाएगा ? क्या यह हमारी नाजायज औलाद है या हमारे किसी पाप की निशानी है ?’
    ‘तू समझती क्यों नहीं .हम कुछ नया नहीं कर रहे हैं ,युगों से ऐसा ही होता रहा है ,ऐसे बच्चों को किन्नर आकर अपने साथ ले जाते हैं ,बच्चो को पता भी नहीं चलता कि वह किस की औलाद हैं .’
      ‘अभी  तुमने  कहा कि हमारे साथ रहा तो इस बच्चे को भी बहुत झेलना पड़ेगा’...हमारे साथ नहीं रहा तो क्या उसे कुछ भी नहीं सहना पड़ेगा ?..अपने पडौस में देख लो रमेश जी की बेटी के दोनों हाथ नहीं है पर उसने पैरों की उँगलियों से लिख कर दसवीं पास करली है .स्कूल में उसे अपाहिज होने की वजह से बहुत झेलना पड़ता है .मेरे मामा का बेटा जन्म से अँधा है पर वह उसका पालन कर रहे हैं... 
       पर मेरा बच्चा तो हर तरह से स्वस्थ है ,क्या हुआ जो वह लड़का या लड़की की श्रेणी में न आकर किन्नर है.मैं उसे अच्छी शिक्षा दूँगी ,उसका अच्छा भविष्य बनाऊंगी .मैं उसे तालियाँ बजा कर घर घर से उगाही करने के लिए नहीं छोडूंगी.भले ही सब मुझे पागल कहें पर यह मेरा अंतिम फैसला है .’  
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Tuesday, July 21, 2020

जमीर

लघुकथा          
                   जमीर
                                                पवित्रा अग्रवाल

  "  अमन तुम्हारी माँ कह रही थीं कि तुम मेरे पेशे में नहीं आना चाहते ?  "    
 " हाँ पापा मैं वकील नहीं बनना चाहता।" 
" क्यों बेटा ? आज कल हर क्षेत्र मे भयंकर कम्पटीशन है।इस  क्षेत्र मे भी है पर मेरी वजह से मेरे अनुभवों का फायदा तुम्हें मिलेगा  । "
"पापा आप क्रिमिनल वकील हैं ।आप को पहले से पता होता है कि आप जिसका केस लड़ रहे हैं वह दोषी है या निर्दोष  ? "
    "हाँ, हम क्लाइंट से सब से पहले यही कहते हैं कि हम से कुछ भी  छुपाना नहीं, आगे हम देख लेंगे"
  "  अब मान लीजिये आपके पास कोई  ऐसा केस आता है जिसमे किसी ने राष्ट्रीय एकता ,राष्ट्रीय सौहार्द  को नष्ट करने व राष्ट्रद्रोह का काम किया है,उसको भी  बचाने का काम आप करेंगे ? "
 "यदि मैं  उसका केस लड़ता हूँ  तो फिर उसे बचाने का पूरा प्रयास  करूँगा "
        "अपराधी की वकालत करनी ही नहीं चाहिए। "
"मैं उसकी तरफ से केस नहीं लड़ूँगा  तो दूसरा वकील लड़ेगा " 
  " पर पापा  अपराधी को बचाने का मतलब है निर्दोष को सजा दिलाना, नो पापा नो, मैं इस प्रोफेशन के लायक नही हूँ,सॉरी पापा।  "
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-पवित्रा अग्रवाल
 

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Monday, May 25, 2020

आप मेरी जगह होतीं तो ?

लघुकथा        
                     आप मेरी जगह होतीं तो ?
                                             
  पवित्रा अग्रवाल

       रात को मुन्ने के रोने से आवाज सुन कर मैं कमरे से बाहर आई तो परेश मुन्ने को गोदी में लिए चुप कराने की कोशिश कर रहा था .मैंने उसे गोदी में लिया तो भी उसका रोना नहीं जारी था  .
‘वर्षा क्या कर रही है ?...उसी की गोदी में चुप होगा ...हो सकता है भूखा हो .’
‘सो रही है...
‘तो उसे उठा दे बेटा ’
‘इतनी देर से रो रहा है माँ , क्या वह आवाज नहीं सुन रही ...उसे मम्मी के पास जाने से रोक लिया न उसी का बदला ले रही है ’
     मुझे याद आया परसों ही उसने मुझ से पूछा था – ‘ मम्मी जी मेरी जगह आप  होतीं तो क्या करती ?’
‘किस विषय में ?’
‘देखिये न भैया आये हुए हैं , मैं उनके साथ मम्मी के पास जाना चाहती हूँ पर ये भेजने को तैयार नहीं हैं .’
    ‘तुम दोनों की खीचा तानी मैं कई दिनों से देख सुन रही हूँ .पर सच पूंछो तो बेटा मैं तुम्हारी जगह होती तो इस समय  मम्मी के पास जाने के विषय में सोचती भी नहीं ’
‘मैं एक साल से वहां नहीं गई हूँ .’                                    
     ‘हाँ एक साल से तुम उस शहर में नहीं गई हो पर तुम्हारी मम्मी तो अभी दो तीन महीने तुम्हारे पास रह कर गई हैं .पापा व भाई ,बहन भी मिलते रहे हैं.  उनके अतिरिक्त तो वहां कोई है भी नहीं जिस से तुम नहीं मिल पाई हो .’
‘ फिर भी मेरा मन है जाने का  '
   ‘बेटा वह तुम्हे जाने से क्यों मना कर रहा है, उसकी भावना भी तो समझो . मुन्ना अभी चार  महीने का भी नहीं हुआ है और इन दिनों वहां कड़ाके की सर्दी पड़ रही है .वह वहां जाकर बीमार ना हो जाए इस लिए ही तो मना कर रहा है ’
   ‘फिर बाद में मैं बच्चे के साथ अकेले कैसे जाऊगी मम्मी जी  ?
‘तुम्हे कौन सा ट्रेन से जाना है, प्लेन से तीन –चार घंटे में पहुँच जाओगी .परेश   तुम्हे एयरपोर्ट छोड़ आएगा ,वहां तुम्हारे पापा ले लेंगे ...वैसे  परेश यह भी तो  कह रहा है कि इस महीने ऑफिस में बहुत काम है .बीस पच्चीस दिन बाद वह तुम्हें  पहुंचा आएगा ,तब तक वहां सर्दी भी कम हो जाएगी ...थोड़े दिन हमारे साथ भी रह लो ...तुम्हे यहाँ कोई परेशानी है तो मुझे बताओ... तुम लोग आने वाले हो इसलिए मैं ने कुक लगा ली थी ’
‘ठीक है मम्मी जी ’
     उसका भाई चला गया, तब से वह गुम सुम सी है.
‘बेटा ऐसे कब तक चलेगा ,जिद्द कर रही थी तो उसे जाने देता .’
‘ठीक है माँ छुट्टी लेकर एक दो दिन में मैं पंहुचा आता हूँ ’

     मुन्ना अब भी  रोये जा रहा था


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Friday, April 24, 2020

दूरदर्शी


लघुकथा
                         दूरदर्शी
                                            पवित्रा अग्रवाल

      "सर इस बार अपने भव्य समारोह के उद्घाटन के लिए आप किस उद्योगपति को बुला रहे हैं ?'
       "इस वर्ष किसी उद्योगपति को नहीं, सेंट मेरी स्कूल की प्रिन्सपल को बुलाने का इरादा है ।'
  "क्यो सर हर वर्ष तो आप किसी ऐसे व्यक्ति को बुलाते थे जो अच्छा डोनेशन दे जाता था,इस बार प्रिन्सपल को क्यों ?..वहाँ तो डोनेशन लेने की परम्परा है,देने की नहीं ।'
     "अरे हम भी तो डोनेशन न देने वालों में से हैं... अगले वर्ष अपने परिवार के एक बच्चे का एडमीशन मुझे उन्हीं के स्कूल में कराना है,अब समझ में आया कुछ ?'
      "जी सर, समझ गया ।'
                                                       -----

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Thursday, March 19, 2020

नई बयार


 लघुकथा                
                         नई  बयार
                                                    पवित्रा अग्रवाल 

     
  बेटे के घर पुत्री पैदा हुई थी पर  बेटे बहू कुछ उदास थे .उसी शहर में अपने पति के साथ अलग रह रही माँ  को पता चला तो वह मिठाई का डिब्बा लेकर अस्पताल पहुंची और दादी बनने की ख़ुशी में  नर्सों, मिलने आने वालों को मिठाई खिलाई .
माँ की इस हरकत पर बेटे बहू को बहुत गुस्सा आया
‘माँ हमारे बेटा नहीं बेटी हुई है’
‘हाँ मुझे मालूम है लक्ष्मी आई है.’
‘माँ , माता पिता से अधिक दादा दादी को पोते की चाह होती है और तुम पोती के आने की ख़ुशी में लड्डू बाँट रही हो ’
‘बेटा पहली बात तो मुझे बेटियां भी उतनी ही प्यारी है जितने बेटे .वैसे भी मैं ने बेटी का सुख कहाँ जाना है. भगवान ने बेटी दी ही नहीं और तू भी उदास मत हो समय बदल रहा है , आज बेटियां भी किसी से कम नहीं हैं’
‘फिर भी ...
 ‘ फिर भी क्या बेटा ?... आज कल बहुत से घरों में बेटे के घर माता पिता को प्रवेश नहीं मिलता ,बेटी के घर में फिर भी थोड़ी पूछ हो जाती है .अपनी सास को ही देख लो उनको तुम लोग जितनी इज्जत देते हो उनका बेटा कहाँ देता है ?..तो बेटा जैसी चले बयार पीठ तब तैसी दीजे '
     
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Thursday, February 20, 2020

बेइमान कौन ?

लघुकथा
                       बेइमान कौन ?
                                                    पवित्रा अग्रवाल
   
      मैं ने आटो वाले से कहा-"बाबू ,चार मीनार चलोगे ?'
    "हौ,चलता पर पेंतीस रुपये लगते ।'
    "पर मीटर से तो पच्चीस रुपये होते हैं।'
    "मीटर से तीस के आस-पास आते ,आज कल क्या सस्ता है ?...पेट्राल के दामां रोज बढ़ रए,पॉच रुपये ही तो बढ़ के पूंछरा न अम्मा।'
   "मीटर से चलना है तो चलो'
   "नको मॉ।
    दूसरे .तीसरे आटो वाले से पूछा किन्तु लगा जैसे सबने एका कर रखा है कि मीटर से नही जायेंगे और पेंतीस रुपये ही लेंगे। मेरे साथ चल रही मेरी बिटिया का धैर्य समाप्त होने लगा था-"क्या मम्मी,इतनी तेज धूप है,पांच रुपये में क्या फरक पड़ जायेगा...दे दो न पेंतीस रुपये ...'
     " बेटा बात पांच-दस रुपयो की नही है,इन लोगो ने लूट मचा रखी है।... बेइमान कही के,मीटर होते हुये भी सौदेबाजी करते हैं....आखिर मीटर किस लिये लगा रखे है.'
  तभी एक आटो वाले ने रुक कर पूछा-"अम्मा कही जाना है क्या ?'
   "हां चारमीनार जाना है।'
   उसने बिना किसी हुज्जत के मीटर डालते हुये कहा-"बैठो अम्मा।'
     आटो मे बैठते हुये मै ने एक सफलता भरी मुस्कान से बिटिया को देखा... मन मे एक संतोष भी था कि मैं ने आटो वालों की गैर- वाजिव मांग को नही माना।
      चारमीनार पहुंच कर पैसे देने के लिये मीटर देखा तो सैंतीस रुपये आये थे यानि कि इन महाशय ने मीटर सैट कर रखा था।
  बिटिया ने मुस्करा कर मेरी तरफ देखते हुये आटो वाले को रुपये दे दिये और पूछा-"अब बताइये मम्मी बेइमान कौन था वे या ये ?'

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Monday, January 13, 2020

सहजता

लघुकथा          
                                  सहजता              
 -                                                       पवित्रा अग्रवाल

     "मम्मी जी धोबन आपके कपड़े बहुत अच्छे प्रेस कर के लाती है। मेरे देखो कितने खराब करके लाई है।' पुत्रवधु संगीता के ये कहते ही मुझे एक पुरानी घटना याद आ गई।
     उन दिनों मेरी बेटी मंजू कुछ दिन के लिए मेरे पास आई हुई थी। एक दिन मेरे कमरे में दाग पड़े देखकर वह सहजता से बोली मम्मी, "महरी आपका कमरा तो जरा भी साफ नहीं पौंछती '
तभी दूसरे कमरे में से संगीता आई और बोली, "महरी को मैंने तो सिखाया नहीं है कि मम्मी का कमरा गंदा पौंछा कर।'
   मंजू एकदम से सकते में आ गई  "भाभी मैंने ऐसा कब कहा कि आपने उसे सिखाया है ? '
"फिर ये कहने का क्या मतलब है कि मम्मी जी का कमरा साफ नहीं पौंछती।'
"इस कमरे में मम्मी रहती हैं इसे हम मम्मी का कमरा कहते हैं, आपके कमरे को भाभी का कमरा कहते हैं।...क्यों कि हम मम्मी के कमरे में ही ठहरते हैं। गंदा दिखा तो कह दिया।...मैंने आपके कमरे से तो तुलना नहीं की कि भाभी का साफ पौंछती है और मम्मी का गंदा।...क्या हम आपस में कुछ बात भी नहीं कर सकते ?'
"नहीं बात कीजिए लेकिन सोच-समझ कर।'
मै चुपचाप सब देखती रही । कुछ कहती तो बेटी की तरफ लेने का ताना सुनना पडता लेकिन उस दिन मन्जू ने बडा अपमानित महसूस किया था ।
     "अरे मम्मी जी मैं आप से कुछ कह रही हूँ ...आप न जाने किस सोच मे डूबी हैं।'  संगीता की आवाज सुन कर मैं विचारों की दुनिया से बाहर आइ --             "तुमने कुछ कहा संगीता ?'
    "हॉ मम्मी जी मैं कह रही थी कि ये धोबन आप की साड़ी कितनी अच्छी प्रेस कर के लाती है....मेरी साड़ी हमेशा खराब प्रेस कर के लाती है ।'
    मन में आया कि उसी की तरह जवाब दू कि धोबिन को मैने तो सिखाया नहीं है कि वो तुम्हारी साड़ी खराब प्रेस कर के लाया करे।'
    किन्तु रिश्तों को कडवाहट से बचाने के लिए मै ने सहजता से हॅसते हुए कहा-"कपड़े तो किसी के भी अच्छे प्रेस नहीं करती बस काम चलाना पडता है 

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Wednesday, November 27, 2019

एक सच्चाई


लघुकथा
             एक सच्चाई 
          पवित्रा अग्रवाल

     दरवाजे की घंटी बजा कर उसने तालियों से अपने आने की सूचना दी .
  दरवाजा खोलते ही घर की मालकिन कुछ चिढ़ कर बोली  ‘क्या अब तुम लोगो ने मौत
 पर भी ताली बजाने और बख्शीश मांगने का काम शुरू कर दिया है ?’
‘ हमें नहीं पता था कि यहाँ किसी की मौत हो गई है .हर दो- चार  महीने में एक बार
 हमारे कुछ साथी यहाँ आते हैं.वे कहते हैं यहाँ की मालकिन बहुत अच्छी है.कभी गुस्सा 
नहीं होती और हमेशा कुछ न कुछ जरूर देती है .हम भी उनमे से एक हैं  पर इस बार 
कुछ ज्यादा समय हो गया ,हम यहाँ नहीं आ पाए ’
‘ठीक है बैठ ,मैं अभी आती हूँ ’
‘नहीं गमी में हमें कोई बख्शीश नहीं चाहिए ... वैसे किस की मौत हो गई ?’
‘मेरे पति की ’
‘आप अकेली दिख रही हैं, बच्चे कहाँ हैं ? ’
‘बेटी की शादी हो गई थी वह सिंगापुर में और बेटा अमेरिका में है ’
‘हाय हाय बाप के मरे में भी कोई नहीं आया ?’
'  एक बार आने में उनका बहुत पैसा और समय खर्च होता है फिर भी आये थे पर 
जल्दी ही चले गए . उनकी भी अपनी जिम्मेदारियां हैं .बेटी का सुबह शाम फोन आ जाता है .’
  उनकी आँखों में आँसू देख कर वह विचलित होगई –‘ आप को बुरा न लगे तो हमारा 
नाम व मोबाईल न.अपने मोबाइल में सेव कर लें .हमारा नाम बेला है .छोटा मुंह बड़ी 
बात कह रही हूँ कभी किसी तरह की जरूरत महसूस हो तो फोन करें ,हम हमेशा आपके
 साथ हैं ’
  ‘पर तुम मेरी मदद क्यों करोगी ?’
  ‘बस इंसानियत के नाते .कुछ और भी बुजुर्ग हैं जिन्होंने हमें कभी दुत्कारा नहीं पर अब
 अकेले हैं. हम लोग कभी कभी उनके पास मिलने जाते रहते हैं . हमारे मन को शांति 
मिलती है .हम अभागों की तो न कोई माँ है,न बाप पर 
किसी ने तो हमें भी जन्म दिया ही होगा ... '
      आंसू पोंछते हुए माँजी ने कहा ‘ठीक है बेला अपना नंबर मुझे दे जाओ  ’ भावुक
 होते हुए माँजी अपना भेद खोल बैठीं ... ‘मुझे भी पहला बच्चा किन्नर ही पैदा हुआ था
 पर घर वालों ने अस्पताल में ही बुला के किसी को दे दिया था .पूरी जिन्दगी मैं उसका 
गम पाले रही .’
     यह  सच्चाई बेला भी जानती है थी पर बिना कुछ कहे आंसू भरी आँखों से वह
 लौट गई .  
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-पवित्रा अग्रवाल
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