Tuesday, December 20, 2016

काहे का मरद

लघु कथा            
                   काहे का मरद

                                                 - पवित्रा अग्रवाल  
 
       कामवाली के घर मे घुसते ही मै ने कहा-"कमलम्मा तुम आज सात दिन बाद आई हो इतनी बार कहा है कि जब डुम्मा मारना हो तो बता दिया करो......अरे तुम्हें क्या हुआ माथे पर ये चोट कैसे लगी ? किसी ने मारा क्या ?'
   "अम्मा हमें और कौन मारेगा ?....हमारी किस्मत में तो अपने मरद से ही मार खाना लिखा।'
   "दारू के लिए फिर पैसे मॉग रहा था ?'
   "दारू के लिए पैसे न देने पर मार खाना तो हमारे लिए कोई नई बात नही अम्मा लेकिन अब वो हमें ये भी बताने लगा कि हम किस घर में काम करें किस घर का छोड दें।'
  "मतलब ?'
  "परसों हम जो नया घर पकड़े न बोलता वो काम नको कर।'
  "वहॉ से तो तुम्हें अच्छी पगार मिल रही है....छोडने को क्यों कह रहा है ?'
    "बोलता वे लोगॉ हम से छोटी जात के हैं....उनका काम नको कर ...हमारी जात वाले लोगॉ फजीता करते ।'
  " उसको कैसे पता लगा कि वो छोटी जाति के हैं ?'
 "अरे अम्मा दूर बैठ के भी दुनियॉ भर की खबर रखता ...हम सब काम वाले एक ही इलाके मे रहते...हमारे साथ वाली कोई बोल दी होगी।'
  " फिर क्या हुआ ?'
  " हम बोले वो अम्मा महीने का हजार देती। तू हम को हर महीना हजार ला के दे तो वो काम छोड देती....बस इसी बात पर बोत मारा अम्मा।'
   "फिर काम छोड दिया तुमने ?'
    "नको अम्मा ..बडी मुश्किल से अच्छा काम मिलता ....एसे छोडने लगी तो पेट को रोटी कौन डालता ? ...जहॉ अच्छी पगार मिले वहॉ काम करती ।अब तक बोत मार खायी,अब मार के देखे ..हाथॉ तोड देती।वैसे भी हम वो घर छोड दिये। हमारे अम्मा,अन्ना(भाइ )यहॉ नजदीक ही रहते ...अभी उनके साथ रह रई।

    
    email - agarwalpavitra78@gmail.com
    

पवित्रा अग्रवाल
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