Tuesday, May 28, 2019

बदलते रोल

लघुकथा
               
   बदलते रोल 
                                                    पवित्रा अग्रवाल

 
  मै बालकनी में कुर्सी रख कर समाचार पत्र पढ़ने बैठी ही थी कि पीछे से बहु की आवाज आई ‘मम्मी जी बालकनी में कुर्सी डाल कर मत बैठा करिए.’
         यह सुन कर मुझे बुरा लगा –  बेटा मेरे बालकनी में बैठने से तुम्हें क्या एतराज  है ? मुन्ना तो अभी बहुत छोटा है, उसे ढंग से चलना भी नहीं आता और तुम्हारी बालकनी भी बहुत ऊंची है ,उसके गिरने का भी कोई डर नहीं है फिर भी मै कुर्सी बाहर नहीं छोडती ,अपने साथ ही अन्दर ले आती हूँ .”
      “ मम्मी जी आप तो कुछ  दिन में चली  जायेंगी पर मुन्ना  बीमार हो गया तो झेलना तो हमें पड़ेगा .दूसरी बात उसे बालकनी की आदत हो जाएगी तो रोज हम से भी बालकनी में ले जाने की जिद्द करेगा,हमारे पास कहाँ समय है ? ’
         मुझे लगा सास - बहू के रोल बदल गए हैं .पहले जिस तरह सास बहू को कुछ न कुछ निर्देश देती रहती थीं ,आज वह जिम्मा बहुओं ने ले लिया है .

ईमेल – agarwalpavitra78@gmail.com    

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