Monday, January 13, 2020

सहजता

लघुकथा          
                                  सहजता              
 -                                                       पवित्रा अग्रवाल

     "मम्मी जी धोबन आपके कपड़े बहुत अच्छे प्रेस कर के लाती है। मेरे देखो कितने खराब करके लाई है।' पुत्रवधु संगीता के ये कहते ही मुझे एक पुरानी घटना याद आ गई।
     उन दिनों मेरी बेटी मंजू कुछ दिन के लिए मेरे पास आई हुई थी। एक दिन मेरे कमरे में दाग पड़े देखकर वह सहजता से बोली मम्मी, "महरी आपका कमरा तो जरा भी साफ नहीं पौंछती '
तभी दूसरे कमरे में से संगीता आई और बोली, "महरी को मैंने तो सिखाया नहीं है कि मम्मी का कमरा गंदा पौंछा कर।'
   मंजू एकदम से सकते में आ गई  "भाभी मैंने ऐसा कब कहा कि आपने उसे सिखाया है ? '
"फिर ये कहने का क्या मतलब है कि मम्मी जी का कमरा साफ नहीं पौंछती।'
"इस कमरे में मम्मी रहती हैं इसे हम मम्मी का कमरा कहते हैं, आपके कमरे को भाभी का कमरा कहते हैं।...क्यों कि हम मम्मी के कमरे में ही ठहरते हैं। गंदा दिखा तो कह दिया।...मैंने आपके कमरे से तो तुलना नहीं की कि भाभी का साफ पौंछती है और मम्मी का गंदा।...क्या हम आपस में कुछ बात भी नहीं कर सकते ?'
"नहीं बात कीजिए लेकिन सोच-समझ कर।'
मै चुपचाप सब देखती रही । कुछ कहती तो बेटी की तरफ लेने का ताना सुनना पडता लेकिन उस दिन मन्जू ने बडा अपमानित महसूस किया था ।
     "अरे मम्मी जी मैं आप से कुछ कह रही हूँ ...आप न जाने किस सोच मे डूबी हैं।'  संगीता की आवाज सुन कर मैं विचारों की दुनिया से बाहर आइ --             "तुमने कुछ कहा संगीता ?'
    "हॉ मम्मी जी मैं कह रही थी कि ये धोबन आप की साड़ी कितनी अच्छी प्रेस कर के लाती है....मेरी साड़ी हमेशा खराब प्रेस कर के लाती है ।'
    मन में आया कि उसी की तरह जवाब दू कि धोबिन को मैने तो सिखाया नहीं है कि वो तुम्हारी साड़ी खराब प्रेस कर के लाया करे।'
    किन्तु रिश्तों को कडवाहट से बचाने के लिए मै ने सहजता से हॅसते हुए कहा-"कपड़े तो किसी के भी अच्छे प्रेस नहीं करती बस काम चलाना पडता है 

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