Tuesday, September 25, 2018

जुगाड़

   लघुकथा                  
                                       जुगाड़
पवित्रा अग्रवाल

एक स्तंभ - लेखक से  पाठक ने पूछा--"आप अपने स्तंभ में किसी न किसी व्यक्ति पर कीचड़ क्यों उछालते रहते हैं ? लोगों का कहना है कि जिस से आपकी नही पटती या जो आपको महत्व नही देते आप  उनके खिलाफ लिख कर बदला लेते हैं...अब मुझे भी ऐसा लगने लगा है ,क्या यह सही है ?'

"नही ऐसा तो नही है।...आपको ऐसा क्यो लगा ?'
"पिछले दिनो आपने लिखा था कि समाज सेवी कृपा शंकर जी समाज सेवा का ढ़ोंग करते है। काम थोड़ा करते हैं पर  बढ़ा चढ़ा कर प्रचार करते हैं...
"मैं ने जो लिखा था वह गलत नही है ।'
"पर उन्हे तो समाज सेवा के लिये कई बार पुरस्कृत किया जा चुका है। कई पत्रिकाओं में उनके साक्षात्कार भी प्रकाशित हुये हैं फिर उनको तो मैं व्यक्तिगत रूप से भी जानता हूँ ,वह एक नेक इंसान हैं।'
        "आप भी क्या बात करते हैं...आप नही जानते, कुछ लोग बड़े जुगाड़ू होते हैं । वैसे भी आज पैसे से बहुत कुछ खरीदा जा सकता है .. फिर अपनी तारीफ में कुछ छपवाना तो और भी आसान है ।'
  " वह कैसे ?'
    "दारू पिला कर और मुर्गा खिला कर किसी से कुछ भी लिखवा लो।'
    "ओ....,लगता है उन्होंने आपको कुछ नही खिलाया - पिलाया.....।'
     
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