Sunday, February 5, 2012

मजबूरी

   लघु कथा 

                                  मजबूरी
                                        पवित्रा  अग्रवाल                                  
           फूला ने नंदा से कहा-"भाभी जी आपके घर में पार्वती काम करती है न...आपको मालुम है वह कौन जात है ?'
        "नहीं'
       "वह जाति से महतर है।'
       अन्दर काम कर रही पार्वती यह बात सुन कर बाहर भागती हुई आई। उसे देखते ही फूला एक दम से सकपका गई।
        पार्वती आक्रामक स्वर मे बोली -"फूला यदि मै महतर हूँ तो तू ही कौन सी बनियां या  बामन  है ?...तू भी तो चमारिन है।'
       "हाँ मै चमार हूँ लेकिन अपनी जाति छिपा कर काम नही करती।तुझ से पहले मैं ही यहाँ काम करती थी।पूछ ले भाभी जी से मै ने काम शुरू करने से पहले ही अपनी जाति बता दी थी। वो तो मै बीमारी के कारण एक महीना काम पर नही आ पायी तो भाभी जी ने तुझे रख लिया।'
       "जाति तो मैं ने भी ना छिपाई है। भाभी जी ने पूछा नही ,मैं ने बताई नहीं । यदि पूछतीं   तो  मैं झूठ थोड़े ही बोलती ।...मै जाति से भले ही मेहतर हूँ पर मेरे घर मे मेहतर का काम कोई भी नही करता। मेरा आदमी तो कम्पाउडर  है फिर भी मैं यहाँ आकर पहले साबुन से हाथ-पैर धोती हूँ तब काम करती हूँ । '
       नंदा सोच रही थी शहर मे आजकल कामवालियों की इतनी किल्लत है कि मिलती ही नहीं और मुझ से काम होता नही।...काम कराना अपनी मजबूरी है...फिर जाति पूछ के क्या फायदा ?...फूला और पार्वती को बहस मे उलझा देख कर नन्दा ने कहा - "पार्वती देख मैं तो यह जात - पात मानती नही किन्तु मेरी सास मानती हैं। वह अभी मंदिर से वापस आ रही होंगी, उन्होंने तुम्हारी बातें सुन ली तो तुझे यह काम छोड़ना पड़ेगा (और फिर सब काम मेरे सिर पड़ेगा) इसलिए जल्दी से यह बहस छोड़ कर अपने काम मे लग जा।'
 पार्वती फूला को खा जाने वाली नजरो से घूरती हुइ अंदर चली गई।


                                                             घरोंदा 
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