Wednesday, September 18, 2019

अकेली माँ

  लघुकथा 
            अकेली माँ
                            पवित्रा अग्रवाल
‘अरुण एक बात कहानी है’
‘हाँ कहो’
‘क्या माँ को दिल्ली से बुला कर अपने साथ रख सकती हूँ ?’
‘क्यों ?’
  ‘ माँ बहुत दुखी हैं .भाई माँ की जरा भी परवाह नहीं

 करता ,उनको वृद्धाश्रम में भेजने की सोच रहा है '
   ‘अब अच्छा है या बुरा है उनका सगा बेटा है, हम क्या कर

 सकते हैं ? यों चाहो तो तुम भाई को समझा सकती हो बस .’
‘अरे वह सिर्फ अपनी बीबी की सुनता है ,मेरी क्यों सुनेगा ? ‘
   ‘माँ बाप से बेटे को दूर करने वाली अधिकतर उसकी पत्नी ही

होती है .तुम ने भी तो मेरी माँ से मुझे अलग कर दिया है .वह

 इसी शहर में हम से तीस किलोमीटर दूर अलग फ्लैट में अकेली

 रहती हैं .वह तो पापा ने एक फ्लैट खरीद लिया था तो उस मे रह

 रही हैं ,वह फ्लैट न होता तो तुम भी उन्हें वृद्धाश्रम जाने को

 मजबूर कर देतीं. हमारे पास चार बेड रूम का फ्लैट है पर मेरी

 माँ के लिए वहां जगह नहीं है .’
    ‘वह अकेली कहाँ हैं ? हम साथ नहीं रहते पर हैं तो इसी
 शहर में.’

     ‘हाँ एक शहर में होकर भी तुम्हारा व बच्चों का होली

 दीपावली वहां जाना  होता है. कुछ दिन को ही सही उनको यहाँ

बुलाने के नाम तुम्हारा मूड ख़राब हो जाता है.’
   ‘सुनो क्या ऐसा हो सकता है कि उन्हें लाकर तुम्हारी माँ के 

साथ रख दें ,उन्हें भी कंपनी हो जाएगी '
   ‘सवाल ही नहीं उठता, मैं किस मुँह से माँ से कहूँगा ? तुमने 

मेरी माँ को प्यार और सम्मान से साथ रखा होता तो मैं तुम्हारी

 माँ के बारे में सोच सकता था. सॉरी पर अब इस विषय में मैं 

कोई बात नहीं करना चाहता .’                                         
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