अगर-मगर घर ना तोड़ो
लघु कथा
"क्यों,कुछ काम है ?'
"हौ साब, बीबी पेट से है, अभी उस को जच्चगी के लिये दवाखाने में शरीक करा के आया हूँ।'
"तुम को कितने बच्चे हैं ?'
"ये तीसरा है साब।'
"तुम्हारी शादी को कितने दिन हो गये ?'
"अगले महीने तीन बरस हो जाते ।'
"तीन बरस में तीन बच्चे ! अब आगे क्या सोचा है ?'
"साब अल्ला के करम से बेटा भी है और बेटी भी।...मैं तो पिछली बार ही बीबी का आपरेशन कराने की सोचा था मगर अम्मी अब्बा नहीं कराने दिये और अब भी नको बोल रऐ।'
"तुम कितने बहन भाई हो ?'
"हम दस हैं साब ।'
"सब पढ़ लिख के अच्छे रोजगार में लगे हैं ?'
"हमारे अब्बा दर्जी का काम करते हैं ,खाने को ही ठीक से नहीं जुटा पाते थे अच्छी तालीम कहाँ से देते,सब दो-चार क्लास पढ़े हैं, मै ही बारह क्लास तक पढ़ लिया बस।'
"अब तुम तो कुछ सोचो, क्या तुम नहीं चाहते कि तुम्हारे बच्चों की परवरिश तुम से बेहतर तरीके से हो ?'
" चाहता तो हूँ मगर घर वाले......'
"देखों ये अगर मगर छोड़ो और कुछ फैसले अपने आप लेना सीखो ।'
"शुक्रिया साब,आप सही समय पर मशवरा दिये ...इस बार मैं बीबी का आपरेशन भी करा देता ।'
लघु कथा
माली ने पेड़ पर एक नजर डाली और बोला-"अम्मा झाड़ पर बहुत सी चिड़ियों के घराँ हैं..उसमें उनके के अंड़े और बच्चे भी होंयेंगे...कटिंग किये तो उन के घराँ टूट कर गिर जाते...अम्मा रहने दो न उनको बेघर किये तो पाप लगता ।'
माली की बात सुन कर मुझे एक झटका सा लगा।चिड़ियों का घर टूटने और उनके बेघर होने की उसे इतनी चिंता है।..अभी कुछ दिन पहले ही जब उसने अपने बीबी - बच्चों को बेघर कर के दूसरी औरत को घर मे बैठाया था तब उसे अपने घर के टूटने का ख्याल एक बार भी नही आया ।
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