जमीर
लघुकथा
जमीर
पवित्रा अग्रवाल
" अमन तुम्हारी माँ कह रही थीं कि तुम मेरे पेशे में नहीं आना चाहते ? "
" हाँ पापा मैं वकील नहीं बनना चाहता।"
" क्यों बेटा ? आज कल हर क्षेत्र मे भयंकर कम्पटीशन है।इस क्षेत्र मे भी है पर मेरी वजह से मेरे अनुभवों का फायदा तुम्हें मिलेगा । "
"पापा आप क्रिमिनल वकील हैं ।आप को पहले से पता होता है कि आप जिसका केस लड़ रहे हैं वह दोषी है या निर्दोष ? "
"हाँ, हम क्लाइंट से सब से पहले यही कहते हैं कि हम से कुछ भी छुपाना नहीं, आगे हम देख लेंगे"
" अब मान लीजिये आपके पास कोई ऐसा केस आता है जिसमे किसी ने राष्ट्रीय एकता ,राष्ट्रीय सौहार्द को नष्ट करने व राष्ट्रद्रोह का काम किया है,उसको भी बचाने का काम आप करेंगे ? "
"यदि मैं उसका केस लड़ता हूँ तो फिर उसे बचाने का पूरा प्रयास करूँगा "
"अपराधी की वकालत करनी ही नहीं चाहिए। "
"मैं उसकी तरफ से केस नहीं लड़ूँगा तो दूसरा वकील लड़ेगा "
" पर पापा अपराधी को बचाने का मतलब है निर्दोष को सजा दिलाना, नो पापा नो, मैं इस प्रोफेशन के लायक नही हूँ,सॉरी पापा। "
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email - agarwalpavitra78@gmail.com
Labels: लघुकथा
5 Comments:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23.7.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
आज आपकी टिप्पणी देखी, आभार शेयर करने के लिए .
Very nice story also read Read zadui chasma best story
Shree
You blog is so black backgrounded unable to read your stories
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