Tuesday, July 21, 2020

जमीर

लघुकथा          
                   जमीर
                                                पवित्रा अग्रवाल

  "  अमन तुम्हारी माँ कह रही थीं कि तुम मेरे पेशे में नहीं आना चाहते ?  "    
 " हाँ पापा मैं वकील नहीं बनना चाहता।" 
" क्यों बेटा ? आज कल हर क्षेत्र मे भयंकर कम्पटीशन है।इस  क्षेत्र मे भी है पर मेरी वजह से मेरे अनुभवों का फायदा तुम्हें मिलेगा  । "
"पापा आप क्रिमिनल वकील हैं ।आप को पहले से पता होता है कि आप जिसका केस लड़ रहे हैं वह दोषी है या निर्दोष  ? "
    "हाँ, हम क्लाइंट से सब से पहले यही कहते हैं कि हम से कुछ भी  छुपाना नहीं, आगे हम देख लेंगे"
  "  अब मान लीजिये आपके पास कोई  ऐसा केस आता है जिसमे किसी ने राष्ट्रीय एकता ,राष्ट्रीय सौहार्द  को नष्ट करने व राष्ट्रद्रोह का काम किया है,उसको भी  बचाने का काम आप करेंगे ? "
 "यदि मैं  उसका केस लड़ता हूँ  तो फिर उसे बचाने का पूरा प्रयास  करूँगा "
        "अपराधी की वकालत करनी ही नहीं चाहिए। "
"मैं उसकी तरफ से केस नहीं लड़ूँगा  तो दूसरा वकील लड़ेगा " 
  " पर पापा  अपराधी को बचाने का मतलब है निर्दोष को सजा दिलाना, नो पापा नो, मैं इस प्रोफेशन के लायक नही हूँ,सॉरी पापा।  "
                         -------


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-पवित्रा अग्रवाल
 

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5 Comments:

At July 22, 2020 at 4:30 AM , Blogger दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23.7.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क

 
At July 29, 2020 at 6:21 AM , Blogger http://bal-kishor.blogspot.com/ said...

आज आपकी टिप्पणी देखी, आभार शेयर करने के लिए .

 
At August 28, 2020 at 9:07 AM , Blogger USER 1 said...


Very nice story also read Read zadui chasma best story

 
At December 19, 2020 at 9:06 AM , Blogger PARVATHA said...

Shree

 
At December 19, 2020 at 9:09 AM , Blogger PARVATHA said...

You blog is so black backgrounded unable to read your stories

 

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