Monday, August 19, 2019

घर जवांई

लघुकथा
                         घर  जंवाई

                                               पवित्रा अग्रवाल

शुभ को बैड मिन्टन खेलने आया देख कर दोस्तों के चेहरे खिल गए।
"मोहित आज भी सूरज पूरव से ही निकला था क्या ?'
"ऐसा क्यों कह रहे हो ?'
"शुभ कितने दिन बाद मिला है तू ?'
"अब मैं अकेला नहीं हूँ ।'
"मालुम है ,अब तेरी शादी हो चुकी है पर अविवाहित तो हम भी नहीं हैं।'
"यार वह इतने दिन बाद आया है उसका स्वागत करो ,क्या शिकवे शिकायत लेकर बैठ गए।'
"लगता है भाभी जी मैंके गई हैं ?'
"नहीं मैके वाले यहाँ आए हुए हैं।'
"तो तू इतना मायूस क्यों हैं ?...दो चार दिन को अपनी बेटी से मिलने को आए होंगे ...मिल कर चले जाएंगे  ...'
"एक महीने से तो वो सब यहीं हैं।'
"अच्छा ।'
"मुझे महसूस ही नहीं होता कि अपने घर में हूँ....लगता है घर जवांई  बन कर ससुराल में रह रहा हूँ।' आजकल मम्मी पापा की बहुत याद आती है।'

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-पवित्रा अग्रवाल

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