Saturday, October 6, 2018

खामियाजा


   लघुकथा                
                 खामियाजा
                                                                    पवित्रा अग्रवाल
            ‘अरे यार बंसल बहुत दिनों बाद मिले हो ? कैसे हो ? बच्चे
 कहाँ हैं ?
  ‘एक बेटा कनाडा में है और एक अमेरिका में ‘
  ‘तो क्या तुम और भाभी यहाँ अकेले हो ?’
  ‘हाँ गुप्ता अब तो अकेले ही हैं और लगता है मरते दम तक
 अकेले ही रहेंगे.’
    ‘अरे ऐसा क्यों सोचते हो ...चल सामने के रेस्त्रां में बैठ कर
 चाय पीते है 
    रेस्टोरेंट में चाय का इंतजार करते गुप्ता को  बंसल से हुए
 एक पुराने  वार्तालाप की याद आगई .उसने कहा था ‘अरे गुप्ता
  तू तो पूरा कंजूस है ,इतना पैसा होते हुए भी बच्चों का कैरियर
 बनाने में पीछे रह गया .मेरे पास तो इतने साधन भी नहीं थे
 फिर भी पेट काट कर दोनों लड़कों को इंजीनियर बनाया है. दोनों
 को बड़ा अच्छा पैकेज मिला है .अब चैन से हूँ .बस दोनों की शादी
 और हो जाये ,अच्छी संस्कारी बहुएँ आजाये तो जिंदगी आराम से
 कटे.’
   उसने कहा था ‘ यार बेटे तभी तक अपने हैं जब तक शादी
  नहीं होती .’
   चाय आने के साथ ही उसका ध्यान भंग हुआ .बंसल ने पूछा 
  ‘ गुप्ता तुम्हारे बच्चे कैसे हैं, कहाँ हैं ?’
  ‘ यहीं हैं हमारे साथ.मैं ने तो ग्रेजुएशन करा के बाईस की
 उम्र में दोनों की शादी कर दी थी.घर के व्यापार में लगे हैं
 तो  भाग कर भी कहाँ जायेंगे ?...लोग मुझे हमेशा कंजूस
 कहते रहे क्यों कि मैंने बच्चों को डाक्टर ,इंजीनियर नहीं
 बनाया पर अब लगता है कि अच्छा ही किया ... ज्यादा 
पढाता तो कैरियर की तलाश में हमें छोड़ कर कहीं दूर जा
 बैठते. फिर इतने बड़े व्यापार का मैं क्या करता ?...अब दुःख
 तकलीफ में हम एक दूसरे के साथ तो हैं.’
  ‘शायद तुम ठीक ही कह रहे हो.  कभी कभी मुझे भी यही
 लगता है कि कहीं हम बच्चो को ऊंची शिक्षा दिलाने का
 खामियाजा तो नहीं भुगत रहे ?’

 ईमेल – agarwalpavitra78@gmail.com

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5 Comments:

At October 6, 2018 at 6:56 AM , Blogger शिवम् मिश्रा said...

ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 06/10/2018 की बुलेटिन, फेसबुकिया माँ की ममता - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

 
At October 7, 2018 at 1:57 AM , Blogger Roli Abhilasha said...

प्रेरणास्पद!!

 
At October 8, 2018 at 5:24 AM , Blogger विकास नैनवाल 'अंजान' said...

रोचक। गुप्ता जी के पास देने के लिए व्यापार था। हाँ, यह सच है कि अब नौकरी के लिए शहर से बाहर निकलना ही पड़ता है। हमे बस यह सोचना पड़ता है कि जरूरी क्या है?

 
At October 25, 2018 at 4:37 AM , Blogger Rahul Solanki said...

बहुत ही सुन्दर कहानी है | और वाकेय प्रेरणा देने वाली है | आजकल की पीडी जैसे ही पड़ने लिखने के लिए बहार जाती है वैसे ही वह अपने परिवार को भूलती जाती है और अपना पूरा ध्यान अपने आने वाले कल पर लगा लेती है | आपकी कहानी सिख देने वाली है | Talented India News App

 
At January 21, 2020 at 6:52 PM , Anonymous preeti said...

good writting style

 

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