Saturday, February 3, 2018

झटका

मेरे लघुकथा  संग्रह -- 'आँगन से राजपथ ' से -----
 
लघुकथा
               
    झटका                       
                                      पवित्रा अग्रवाल

         राधा को खाना बनाते देख कर वसुधा ने पूछा --- "अरे राधा तेरी आँखों को क्या हुआ ?'
 "वो आज कल आँखें लाल होने की बीमारी फैल रही है न ...वही हमें भी हो गई है...घर में सब को हो रही है।'
 "फिर तुझे काम पर नहीं आना चाहिए था ।'
 "अम्मा इस महीने वैसे ही कई छुट्टी ले ली हैं.. अब फिर घर बैठ जाऊँगी तो घर खर्च कैसे चलेगा ?'
  "पर मेरे घर में भी छोटे छोटे बच्चे हैं ... उन्हें इंफैक्शन हो गया तो...। तू जा, खाना हम बना लेंगे।...ठीक होने के बाद आ जाना ।'
 "ठीक है अम्मा आप कह रही हो तो चली जाती हूँ पर इसे डुम्मा नहीं मानना ?'
 "ठीक है अब तू जा...और हाँ अपनी सहेली को बोलना कुछ दिन के लिए वह आ कर खाना बना दे, उसे पैसे दे दूँगी ।'
 दूसरे दिन वसुधा भी उस रोग की चपेट में आ गई थी।राधा की सहेली खाना बनाने आई तो लाल आँखें  देख कर बोली - "क्या अम्मा आपको भी लग गई यह बीमारी ?'
 "हाँ लग तो ऐसा ही रहा है...रसोइ में चल तुझे बतादूँ कि क्या बनाना है ।'
 "नहीं अम्मा हम काम नहीं कर पाएगे...हमें भी हो गई तो ?'
    वसुधा को झटका सा लगा  -- "अरे ज्यादा पैसे ले लेना ।'
    पर वह जा चुकी थी ।

 
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