Friday, September 22, 2017

अन्तर

लघु कथा  
                            अन्तर
                                                   पवित्रा अग्रवाल       
     
              " सुनो , मम्मी के घर तो मैं  फोन पर घंटों  बात करती थी,अमेरिका में  रह रही अपनी दोस्त से भी खूब बात रती थी  पर कभी किसी ने नहीं टोका,यहाँ तो फोन  पर हाथ लगाते ही एसा लगता है जैसे  सब घूरने लगे  हैं ।'
 'किसी ने कुछ कहा ?'
'नहीं कहा तो किसी ने कुछ नहीं पर.... 
              पति ने समझाया--"ये तुम्हरा भ्रम है ऐसा कुछ नहीं है. लेकिन तुम्हारे मम्मी के घर और मेरी मम्मी के घर में एक बहुत बड़ा अंतर है। तुम्हारे पिता प्रशासनिक अधिकारी हैं ,उन्हें ऊपर से बहुत सी सुविधाएं मिलती हैं,उनका फोन-बिल भी सरकार भरती है पर मेरे पिता तो एक शिक्षक हैं  और उनको  बिल अपनी जेब से भरना पड़ता है।  इसलिए यहाँ  हम लोग फिजूलखर्ची से बचते है। …   खास तौर से  एस.टी. डी. से कोइ जरुरी बात 
करनी हो तो बात 
अलग है वर्ना हम लोग एस.टी. डी.रात  को करते है क्यों  कि उस  समय आधे पैसे लगते है  । "
           "अच्छा !  मुझे इस बात  का ज्ञान अभी तक नहीं था कि रात को  एस.टी. डी. करने पर आधे पैसे लगते हैं. आगे से मैं भी रात को ही किया करुँगी। "

                                                    -----
 
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3 Comments:

At September 23, 2017 at 12:50 AM , Blogger Onkar said...

सुन्दर लघुकथा

 
At September 23, 2017 at 7:45 AM , Blogger http://bal-kishor.blogspot.com/ said...

आभार शास्त्री जी

 
At September 23, 2017 at 7:46 AM , Blogger http://bal-kishor.blogspot.com/ said...

धन्यवाद ओंकार जी ।

 

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