बैठी लक्ष्मी
लघु कथा
बैठी लक्ष्मी
रतन के घर में घुसते ही मनीषा ने कहा--" आज तुम ने लंच में आने में बहुत देर कर दी ।कुछ परेशान भी दिख रहे हो ।''
"हाँ पुलिस स्टेशन से आ रहा हूँ ।'
"क्यों,क्या हुआ ?'
"बैंक से पचास हजार रुपए ले कर आ रहा था। मोटर साइकिल पर सवार दो लोगों ने किसी का पता पूछा। मैं उनको बता ही रहा था कि वह मेरे हाथ से बैग छीन कर भाग गए ।स्कूटर नंबर मैंने देख लिया था ।पुलिस में रिपोर्ट लिखा कर आ रहा हूँ।'
"अरे ऐसे लोग स्कूटर भी चोरी का ही स्तेमाल करते हैं।तुम तो इतने सावधान रहते हो...'
"बस नुकसान होना था सो हो गया पर पचास हजार कोई छोटी रकम नहीं होती और इस समय तो पैसे की जरूरत भी बहुत थी।रत्ना का एम बी ए में एडमीशन कराना था ।'
मनीषा को बैठी लक्ष्मी की याद आ गई,तीन चार महीने पहले की ही तो बात है। धनतेरस के दिन उसने पति से कहा था - "आज का दिन शुभ है,आज मैं चाँदी की बैठी हुई लक्ष्मी जी की मूर्ति खरीद कर लाऊँगी ।दीपावली के दिन अपने मंदिर में इसकी स्थापना कर के लक्ष्मी पूजन करेंगे ।'
रतन ने टोका था--"अपने मंदिर में चाँदी की इतनी बड़ी लक्ष्मी जी हैं तो दूसरी क्यों ?'
"हाँ हैं , पर वह खड़ी हुई लक्ष्मी की है ।उस दिन मिसेज चारु आई थीं,.. आपको तो मालुम है कि वह कितनी धनी हैं ।हमारे मंदिर को देखते ही बोलीं "अरे आपने मंदिर में खड़ी लक्ष्मी की मूर्ति क्यों रख रखी है ? मूर्ति बैठी हुई लक्ष्मी की होनी चाहिए ।'
मैंने कहा--" मुझे तो यह सब पता नहीं था ।क्या इसका कुछ खास कारण है ?'
वह बोलीं "लक्ष्मी जी बड़ी चंचल प्रवृत्ति की होती हैं, आराम से बैठी लक्ष्मी की तुलना में खड़ी लक्ष्मी के जल्दी चल देने की संभावना रहती है।मेरे घर में तो खड़ी लक्ष्मी की एक तस्वीर तक नहीं है ।'
"अरे यार तुम भी कैसी कैसी बातों में विश्वास करने लगती हो ,ऐसे...
"बस बस तुम मुझे कुछ मत समझाओ , मैं ने निर्णय कर लिया हैं कि बैठी हुई लक्ष्मी की मूर्ति लाऊँगी तो बस लाऊँगी ।'
"ठीक है जरूर लाओ ।'
और वह लाई थी ।अपने मंदिर में जा कर उसने देखा लक्ष्मी जी तो अभी भी मंदिर में बैठी हुई हैं पर...
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