छूत के डर से
लघु कथा
छूत के डर से
पवित्रा अग्रवाल
बर्तन साफ करते हुए लता की नजर कान्ता भाभी पर पड़ी जो बहुत खाँस रही थीं ।
क्या हुआ भाभी तबियत ठीक नहीं है ?
"हाँ तबियत खराब हो रही है,रात भर तेज बुखार चढ़ा है,साहब की तबियत भी ढ़ीली है ,लगता है उन्हें भी बुखार आएगा।'
"हाँ भाभी आजकल फ्लू बहुत फैल रहा है। मैं बर्तन माँज कर जा रही हूँ ,अब तीन चार दिन मैं नहीं आऊंगी ।''
"लता ये क्या कह रही है ...मेरी तबियत खराब है ,उस पर आज तीन चार मेहमान भी आ रहे हैं...इस समय मैं तुझ को छुट्टी नहीं दे सकती ।''
"पर भाभी मुझे छुट्टी चाहिए ।'
"कहीं जा रही हो ?'
"नहीं जा तो कहीं नही रही...पर...
"पर क्या ?'
"आप सब को फ्लू हो रहा है...सुना है यह एक से दूसरे को लगता है...मुझे भी हो गया तो...?'
"अरे ऐसे कैसे हो जाएगा ?'
"भाभी पिछले बरस जब मुझे सर्दी खाँसी हुए थे तो आपने कहा था यह इंफैक्शन है.. हमें भी लग सकता... कुछ दिन काम पर मत आओ ...भाभी कहा था न ?.....'
"हाँ कहा तो था...पर तब मेरे पास दो काम वाली थीं।...तू आजा कुछ नहीं होगा ।'
"तो क्या यह बीमारी हमसे आपको तो लग सकती है पर आप से हमको नहीं लगेगी ?
'अरे सुन तो' पर वह जा चुकी थी
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