लक्ष्मी
लघु कथा
लक्ष्मी
पवित्रा अग्रवाल
दीपावली की शाम को फ्लैट से बाहर जाते हुए बेटे ने मम्मी से कहा --"अपन सब लोग घर से बाहर जा रहे हैं लौटते लौटते रात के ग्यारह बज सकते हैं,आप कहें तो खिड़कियाँ भी बन्द कर दूँ ?'
"अरे नहीं,...कहा तो यह जाता है कि इस दिन घर के खिड़की, दरवाजे सब खुले रखने चाहिए ताकि लक्ष्मी जी घर में प्रवेश कर सकें किन्तु आज के समय में ऐसा करने का मतलब है चोरों को दावत देना....पर खिड़की तो खुली छोड़ ही सकते हैं ।'
"अरे मम्मी इस पटाखेबाजी के बीच खिड़कियाँ खुली रखना भी सुरक्षित नहीं है ।'
"कुछ नहीं होता,तुम खिड़कियाँ बन्द नहीं करना ।'
"ठीक है मम्मी मैं ने खिड़कियाँ खुली छोड़ दी हैं अब चलें ?'
रात को ग्यारह बजे वे सब घर लौटे तो पता चला कि किसी जलते हुये राकेट से खिड़की के पर्दे में आग लग गई थी किन्तु पड़ौसियों की सतर्कता से तभी आग बुझा दी गई और एक बड़ा हादसा होते होते बच गया ।
ईमेल agarwalpavitra78@gmail.com
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Labels: लघु कथा
2 Comments:
प्रेरक कहानी
bahut bahut dhanyvad kavita ji .
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