डुकरिया
लघु कथा
डुकरिया
पवित्रा अग्रवाल
ससुराल से पीहर आई बेटी से वहाँ के हाल चाल पूछते हुए माँ ने पूछा -- "तेरी डुकरिया के क्या हाल हैं ?'
"कौन डुकरिया माँ ?'
"अरे वही तेरी सास ।'
"प्लीज माँ उन्हें डुकरिया मत कहो ...अच्छा नहीं लगता ।'
"मैं तो हमेशा ही ऐसे कहती हूँ, इस से पहले तो तुझे कभी बुरा नहीं लगा...अब क्या हो गया ?'
"इस डुकरिया शब्द की चुभन का अहसास मुझे तब हुआ जब एक बार अपनी सास को भी आपके लिए इसी शब्द का स्तमाल करते सुना था...यद्यपि उन्हों ने मेरे सामने नहीं कहा था।'
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ससुराल से पीहर आई बेटी से वहाँ के हाल चाल पूछते हुए माँ ने पूछा -- "तेरी डुकरिया के क्या हाल हैं ?'
"कौन डुकरिया माँ ?'
"अरे वही तेरी सास ।'
"प्लीज माँ उन्हें डुकरिया मत कहो ...अच्छा नहीं लगता ।'
"मैं तो हमेशा ही ऐसे कहती हूँ, इस से पहले तो तुझे कभी बुरा नहीं लगा...अब क्या हो गया ?'
"इस डुकरिया शब्द की चुभन का अहसास मुझे तब हुआ जब एक बार अपनी सास को भी आपके लिए इसी शब्द का स्तमाल करते सुना था...यद्यपि उन्हों ने मेरे सामने नहीं कहा था।'
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-पवित्रा अग्रवाल
ईमेल -- agarwalpavitra78@gmail.com
मेरे ब्लोग्स --
Labels: लघु कथा
5 Comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-05-2015) को "सिर्फ माँ ही...." {चर्चा अंक - 1971} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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bahut bahut dhanyvad.
बहुत सुन्दर और सार्थक लघु कथा...
bahut bahut dhanyvaad onkar ji
मेरे ब्लॉग पर आने और अपनी टिप्पणी देने के लिए बहुत बहुत आभार कैलाश जी .कभी दुसरे ब्लॉग पर भी आयें .
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