छवि
लघु कथा
छवि पवित्रा अग्रवाल
भारतीय संस्कृति में रची बसी ,विदुषी श्वेता बहन जी के सम्मान में एक आयोजन रखा गया था .क्यों कि वह धार्मिक आयोजन था अतः श्रोता भी बहुत थे . संयोजक जी ने कहा बहन जी बस अभी आती ही होंगी .. .वह भारतीयता की बहुत बड़ी समर्थक हैं....वह अभी पश्चिमी देशों में भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर व्याख्यान दे कर लौटी हैं .आप में से बहुत लोगों ने उन्हें सुना भी होंगा ,बहुत अच्छा बोलती हैं .’
तभी हाल में बाबकट बालों में जींस शर्ट पहने एक बेडौल सी महिला ने प्रवेश किया .
संयोजक जी ने उत्साहित होते हुए कहा –‘ इंतजार की घड़ियाँ समाप्त हुईं ,विदुषी श्वेता बहन जी पधार चुकी हैं...बहनजी आप सीधे मंच पर आजायें .
उन्हें देख कर पीछे महिलाओं में फुसफुसाहट होने लगी...'अरे इन्हें भी लग गई हवा योरोपीय देशों की .’
'हाँ यह तो पहचान में ही नहीं आ रहीं, एक बार बाहर जाते ही भारतीय वेषभूषा तो गायब ही हो गई .’
‘इस से पहले तो हमेशा उन्हें साड़ी पहने ही देखा था ,कभी सलवार सूट में भी नहीं देखा था .'
‘हाँ उनके भारी भरकम शरीर पर यह ड्रेस अच्छी भी नहीं लग रही...इस आयोजन में तो उन्हें भारतीय कपड़ों में ही आना चाहिये था .'
‘आज कल अपनी बहु,बेटियां भी तो इस तरह के कपड़े पहनती हैं '
‘वह बात अलग है पर आज श्वेता जी का परिचय जिस रूप में दिया गया है उस छवि से उनकी वेष भूषा मेल नहीं खा रही ...क्या मैं गलत कह रही हूँ ?'
'नहीं यह बात तो आपने ठीक कही है .'
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ईमेल – agarwalpavitra78@gmail.com
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Labels: लघु कथा
2 Comments:
शरीर के हिसाब से ही भेषभूषा हो तो ज्यादा बुरा नहीं लगता ...बहुत सुन्दर
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....
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