दारू की खातिर
लघु कथा
दारू की खातिर
पवित्रा अग्रवाल
पति ने कहा "सुनो अपना पुराना रिक्शे वाला आया है।'
"अपना कौन सा रिक्शे वाला था ?'
"अरे अपने से मेरा मतलब है जो पहले अपने गोदाम में कूलर की घास देने आता था... क्या नाम था उसका,मैं तो भूल गया ।'
"अच्छा,वह बूढ़ा सा रिक्शे वाला...कनकय्या नाम था उसका,वो ढ़ंग से चल तो पाता नहीं है..वह कैसे आ गया...क्या माल ले कर आया है ?'
"नहीं, उसकी जगह अब जो माल लाता है न उसके साथ आगया है।..देखो क्या हालत बना रखी है।शर्ट भी कितनी फटी हुई पहन रखी है ..सुनो कुछ माँगे तो उसे रुपये मत देना, कुछ खाने को हो तो दे देना और मेरी कोई शर्ट दे देना ।'
मैंने पूरी आस्तीन की एक अच्छी सी शर्ट उसे दी थी।
दूसरे दिन घास लेकर रिक्शे वाला फिर आया था,उसने वही शर्ट पहन रखी थी जो मैंने कनकय्या को दी थी।
मैंने कहा -- "यह शर्ट तो मैंने कनकय्या को दी थी ।'
"हाँ अम्मा उसे दारू की बुरी लत है,दारू की खातिर वो ये शर्ट हमको बीस रुपये में बेच दिया।'
ईमेल - agarwalpavitra78@gmail.com
Labels: लघु कथा
5 Comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "न्यूनतम निवेश पर मजबूत और सुनिश्चित लाभ - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सुन्दर कथा ।
लत आसानी से नहीं जाती है दारू कि ... अच्छी लघु कहानी
धन्यवाद जोशी जी
आभार दिगंबर जी
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