लघु
कथा
बयार
बयार
पवित्रा
अग्रवाल
बेटे के घर पुत्री पैदा हुई थी. बेटा बहू कुछ उदास थे.उसी शहर में अपने पति के साथ अलग रह रही माँ को पता चला तो वह मिठाई का डिब्बा लेकर अस्पताल पहुंची और दादी बनने की ख़ुशी में नर्सों, मिलने आने वालों को मिठाई खिलाई .
माँ की
इस हरकत पर बेटे बहू को बहुत गुस्सा आया.
‘माँ हमारे बेटा नहीं बेटी हुई है’
‘हाँ मुझे मालूम है लक्ष्मी आई है.’
‘माँ , माता पिता से अधिक दादा दादी को पोते की चाह होती है और तुम पोती के
आने की ख़ुशी में लड्डू बाँट रही हो ’
‘बेटा पहली बात तो मुझे बेटियां भी उतनी ही प्यारी
है जितने बेटे .वैसे भी मैं ने बेटी का सुख कहाँ जाना है. भगवान ने बेटी दी ही
नहीं और तू भी उदास मत हो समय बदल रहा है , आज बेटियां भी किसी से कम नहीं हैं’
‘ फिर भी ...
‘ फिर भी क्या बेटा ?... आज कल बहुत से घरों में बेटे के घर माता पिता को प्रवेश नहीं मिलता
,बेटी के घर में फिर भी थोड़ी पूछ हो जाती है .अपनी सास को ही देख लो उनको तुम लोग
जितनी इज्जत देते हो उनका बेटा कहाँ देता है ?..तो बेटा जैसी चले बयार पीठ तब तैसी
दीजे .
मेरे ब्लाग्स ---
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