Tuesday, May 23, 2017

समधी - समधन का कमरा

लघु कथा
                     समधी - समधन का कमरा

         
                                               पवित्रा अग्रवाल

             "माँ मुझे औरों से पता लगा कि आप बीमार हैं,क्या मैं इतना पराया हो गया कि आपने मुझे अपनी बीमारी की खबर भी नहीं दी ?''
              "बेटा तू अपने घर परिवार में खुश है...तुझे फोन कर के हम अशान्त नहीं करना चाहते थे...एक ही शहर में रहते हुए तुझे कितने दिन बाद  देखा है ...फोन करने का भी तुम्हारे पास समय नहीं है ।''
     "माँ वो मकान बन रहा है न उसमें व्यस्त था...बस इसी लिए नहीं आ पाया ।''
 "तू मकान बनवा रहा है ?...बेटा एक काम जरूर करना....उसमें एक कमरा अपने समधियों के लिए जरूर बनवाना....हमारी जैसी बेवकूफी मत करना जिसने इतनी दूर की नहीं सोची थी।''
       "आप ऐसा क्यों कह रही हैं माँ ?.... बबलू तो अभी बहुत छोटा है।''
 "तू इसी लिए तो हम से अलग हुआ कि इस मकान में बहू के माँ बाप के रहने के लिए जगह नहीं थी ."

ईमेल -- agarwalpavitra78@gmail.com

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1 Comments:

At July 8, 2017 at 2:37 PM , Anonymous Anonymous said...

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