बेटी होती तो ?
लघुकथा
बेटी होती तो ?
पवित्रा अग्रवाल
महिला आश्रम में एक सामाजिक संस्था द्वारा महिला दिवस
पर एक गोष्ठी रखी थी. उसमे बहुत सी महिलाएं आई थीं विषय
था ‘ बेटियां’ किसी से कम नहीं ‘
कार्यक्रम में आई बहुत सी महिलाएं एक स्वर में बेटियों की
महिमा मंडन में लगी थीं. कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता था .
एक महिला ने कहा - 'बेटी को माता पिता की बहुत चिंता
रहती है शादी के बाद भी उनका ध्यान पीहर में ही लगा रहता है '
दूसरी महिला ने कहा ‘बेटा शादी होने तक ही अपना रहता है
,बाद में तो वह अपनी पत्नी के स्वर में बोलने लगता है .’
आश्रम की महिलाओं से भी कुछ बोलने को कहा गया .कुछ
महिलाएं भावुक हो गई थीं ,चाह कर भी कुछ बोल नहीं पा रहीथीं
.संगठन की अध्यक्षा ने उन्हें कुछ कहने के उद्देश्य से पूछा –
‘आप सब यहाँ क्यों हैं... आप के बेटे, बेटी कहाँ हैं ?’
महिलाओं की तरफ से कुछ जवाब न आने पर आश्रम की
संचालिका ने कहा “सब की एक ही कहानी है. बेटे या तो विदेश में
है या दूसरे शहर में हैं पर कहीं भी उन्हें अपने साथ रखने
को तैयार नहीं है .’
‘और बेटियां ?’
एक महिला बोल पड़ी – ‘अरे यही तो रोना है . बेटी होती तो
क्या हमें यहाँ रहने देती ?’
अब तक शांत बैठी दूसरी महिला को गुस्सा आगया – ‘हाँ यदि
बेटी होती तो शायद आप वहां ( बेटी के यहाँ ) होतीं और आप
की बेटी की सास यहाँ होती ...जैसे मैं हूँ.’
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1 Comments:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22.11.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3163 में दिया जाएगा
धन्यवाद
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