क्या हम जीव नहीं हैं ?
लघुकथा
क्या हम जीव नहीं हैं ?
पवित्रा अग्रवाल
बिकने के लिए तैयार बकरों के झुण्ड के पास से गुजरते एक सपेरे को कुछ लोगों ने घेर कर उसकी पिटारी छीन ली थी और सपेरा पैरों में बैठ कर गिड़गिड़ा रहा था - साहब यह तो मेरे परिवार की रोजी रोटी है,इस कमाई से पेट तो नहीं भरता फिर भी ए सहारा तो है '
झुण्ड के एक बकरे ने अपने साथी बकरे से कहा -- देखो सपेरा कैसे उनके पैर पकड़ कर रो रहा है ,उसकी पिटारी क्यों छीन ली ? वह तो बीन बजा कर सांपों को नचाता है, सब का मनोरंजन करता है और बदले मे उसे कुछ पैसे मिल जाते हैं ,यह लोग पिटारी छीन कर सांप का क्या करेंगे ?'
साथी बकरे ने जवाब दिया -- ‘अरे यह जीव रक्षक ग्रुप के हैं , वैसे भी यहाँ नाग को देवता मान कर उसकी पूजा की जाती है ,जान बचाने से उन्हें पुण्य मिलेगा, ये सांप को जंगल में छोड़ आएंगे। '
‘'सांप तो बहुत खतरनाक होते हैं. हर वर्ष हजारों लोग इनके काटने से मर जाते हैं.इनको बचाने से फायदा ? ’
'फायदा नुकसान तो मैं नहीं जानता पर इनका कहना है कि सपेरे साँपों को बहुत शारीरिक कष्ट देते हैं , उनका मुँह सिल देते हैं जिस से थोड़े दिन बाद वह भूख से मर जाते है और यह जीव हत्या है, जो पाप है '
दूसरा बकरा यह सब देख सुन कर गम से भर उठा --सांप तो लोगों को डस लेते हैं पर हम तो घास ,पत्ते खाते हैं, किसी का कोई नुकसान भी नहीं करते फिर भी हमें खाने के लिए रोज काटा जाता है...क्या हम जीव नहीं हैं ? हमारा कोई रक्षक क्यों नहीं है ?
मेरे ब्लॉग्स -
Labels: लघुकथा
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home