Wednesday, November 7, 2012

खिड़की खुली रखना

लघु कथा
                        खिड़की खुली रखना
                                                                    
                                                                          पवित्रा अग्रवाल
     
     दीपावली की शाम को फ्लैट से बाहर जाते हुए रोहन ने कहा --"मम्मी अपन सब लोग घर से बाहर जा रहे हैं, लौटते लौटते रात के ग्यारह बज सकते हैं,आप कहें तो खिड़कियाँ भी बन्द कर दूँ ?'
         "अरे नहीं,...कहा तो यह जाता है कि इस दिन घर  के खिड़की, दरवाजे सब खुले रखने चाहिए ताकि लक्ष्मी जी घर में प्रवेश कर सकें किन्तु आज के समय में ऐसा करने का मतलब है चोरों को दावत देना....पर खिड़की तो खुली छोड़ ही सकते हैं ।'
        "अरे मम्मी इस पटाखेबाजी के बीच खिड़कियाँ खुली रखना भी सुरक्षित नहीं है ।'
          "कुछ नहीं होता,तुम खिड़कियाँ बन्द नहीं करना ।'
        "ठीक है मम्मी मैं ने खिड़कियाँ खुली छोड़ दी हैं, अब चलें ?'
         रात को ग्यारह बजे वे सब घर लौटे तो पता चला कि किसी जलते हुये राकेट से उनकी खिड़की के पर्दे में आग लग गई थी किन्तु पड़ौसियों की सतर्कता से तभी आग बुझा दी गई और एक बड़ा हादसा होते होते बच गया ।

--
-पवित्रा अग्रवाल
 

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3 Comments:

At November 8, 2012 at 3:39 PM , Blogger  Chaitanyaa Sharma said...

अच्छी कहानी ...आपको दिवाली की शुभकामनायें ..... सादर

 
At November 16, 2012 at 2:55 AM , Blogger http://bal-kishor.blogspot.com/ said...

chetanya bahut bahut dhanyavad beta. aapki dipavali kaisi rahi ?...kitane patake jalaye ?

 
At December 12, 2012 at 2:01 AM , Blogger संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पवित्र जी ,

आज अचानक ही अपने लघुकथा वाले ब्लॉग पर जाना हुआ और आपकी टिप्पणी पढ़ने को मिली ... आभार मेरे उस ब्लॉग पर आने का ...

मेरे ये ब्लोगस भी देखें ---


http://geet7553.blogspot.com/

http://gatika-sangeeta.blogspot.in/


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