चित भी उनकी और पट भी
लघु कथा
चित भी उनकी और पट भी
पवित्रा अग्रवाल
घर पंहुचते ही पत्नी ने पूछा -- " सुनो शास्त्री जी के पास हो आए ?''
"हाँ ''"आपने बताया कि उनके हिसाब से बनवाए इस नए मकान में रहते हुए करीब दो वर्ष हो गए हैं पर परेशानियां रूप बदल बदल कर आ रही हैं, हम सुखी नहीं हैं ।... इस से ज्यादा सुखी तो हम पहले के मकान में थे जिसमें उन्हों ने वास्तु के हिसाब से बहुत से दोष गिना दिए थे।"
"हाँ मैं ने सब बताया कि इस घर में आने के बाद छोटे बेटे की नौकरी चली गई ।बड़ी बहू का एबोर्शन हो गया।...घर में अशान्ति रहने लगी है ...मेरा व्यापार भी अच्छा नहीं चल रहा है ,घर के खर्चे भी नहीं निकल रहे हैं।''
"क्या कहा उन्होंने ?''
"अब क्या कहेंगे ....इन लोगों के पास हर बात का जवाब होता है...कहने लगे -- "देखिए मैं ने आपका घर पूरी तरह से वास्तु के हिसाब से बनवाया है पर आपके पड़ौस के वास्तु का,आपके काम करने की जगह के वास्तु का भी जीवन पर प्रभाव पड़ता है...यह सब परेशानियां उसी की वजह से आ रही हैं।''
मैं ने कहा -- "शास्त्री जी इस घर के सिवाय कुछ भी नहीं बदला है।मेरा व्यापार, बच्चों का आफिस सब पुरानी जगहों पर ही है।''
रूखे स्वर में चिढ़ कर बोले --" तो आपके पड़ौस का वास्तु प्रभावित कर रहा होगा ...उसे मैं कैसे रोक सकता हूँ।''
4 Comments:
bahut sateek vishay uthhaya hai aapne .sarthak sandesh deti laghukatha .aabhar
BHARTIY NARI
Dhanyavad shikha ji aap ko meri laghu katha achchi lagi jan kar achcha laga .isi blogt par any bhi dekh kar bataye. maine aap ke blog par ja kar kuch laghu kathaye dekhi thi achchi hai .tippani karani chahi thi par ja nahi saki.
pavitra
अच्छा किया पवित्रा जी, आपने ब्लाग बना लिया। अब आप अपनी सारी कथाएं इसमें जोड़ते जाइये। ब्लाग जगत में आपका स्वागत है।
आ.पवित्रा जी,
आप की वास्तु शास्त्र पर लिखी व्यंग है, यह लघु कथा | मैं वास्तु और ज्योतिष-शास्त्र को नहीं मानती हूँ , क्योंकि एक नहीं तो दूसरी कमियाँ बताते ही रहेंगे |
आपको बधाई ,
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