हक
लघु कथा
हक
पवित्रा अग्रवाल
बेटा बहू दोनो नौकरी करते हैं।बहू कुछ पहले आ जाती है।बेटा देवेन्द्र कुछ देर बाद आता है। रोज देवेन्द्र आते ही अपनी पत्नी से फरमाइश करता है -"सुषमा एक कप गरम गरम चाय पिला दो।'
माँ ने कई बार बहू को बडबड़ाते हुये सुना था -"एक तो आफिस से थक कर आओ,आकर घर का काम धंधा सम्हालो। कोई ऐसा नही कि एक कप चाय भी पिला दे।'
बहू को बड़बड़ाते सुना तो माँ ने सोचा चलो चाय मै बना दिया करूँगी।तब से बेटे के आते ही चाय माँ बनाने लगी।आज भी बेटे के आने पर माँ ने दरवाजा खोला और चाय बनाने के लिये रसोई मे चली गई। तब बहू चाय का पानी भगोने मे डाल रही थी।माँ ने कहा - "सुषमा देवेन्द्र आगया है,तू उसके पास जा मै चाय बना कर लाती हूँ ।''
घूर कर देखते हुए बहू ने कहा "अपने घर मे अपने पति के लिये एक कप चाय बनाने का हक भी मुझे नही है क्या ?'
माँ बहू का मुंह देखती रह जाती है,वह पूछना चाहती है कि आखिर वह चाहती क्या है किन्तु नही पूंछ पाती । बेटा अभी अभी घर मे घुसा है और वह नही चाहती कि सास - बहू की चिक चिक से वह आहत हो।
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बेटा बहू दोनो नौकरी करते हैं।बहू कुछ पहले आ जाती है।बेटा देवेन्द्र कुछ देर बाद आता है। रोज देवेन्द्र आते ही अपनी पत्नी से फरमाइश करता है -"सुषमा एक कप गरम गरम चाय पिला दो।'
माँ ने कई बार बहू को बडबड़ाते हुये सुना था -"एक तो आफिस से थक कर आओ,आकर घर का काम धंधा सम्हालो। कोई ऐसा नही कि एक कप चाय भी पिला दे।'
बहू को बड़बड़ाते सुना तो माँ ने सोचा चलो चाय मै बना दिया करूँगी।तब से बेटे के आते ही चाय माँ बनाने लगी।आज भी बेटे के आने पर माँ ने दरवाजा खोला और चाय बनाने के लिये रसोई मे चली गई। तब बहू चाय का पानी भगोने मे डाल रही थी।माँ ने कहा - "सुषमा देवेन्द्र आगया है,तू उसके पास जा मै चाय बना कर लाती हूँ ।''
घूर कर देखते हुए बहू ने कहा "अपने घर मे अपने पति के लिये एक कप चाय बनाने का हक भी मुझे नही है क्या ?'
माँ बहू का मुंह देखती रह जाती है,वह पूछना चाहती है कि आखिर वह चाहती क्या है किन्तु नही पूंछ पाती । बेटा अभी अभी घर मे घुसा है और वह नही चाहती कि सास - बहू की चिक चिक से वह आहत हो।
पवित्रा अग्रवाल
ईमेल - agarwalpavitra78@gmail.com
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