Thursday, May 1, 2014

शुभ दिन

लघु कथा    

                           शुभ दिन
       
                                                 पवित्रा अग्रवाल
 

         रमेश आज फिर नौकरी के लिए साक्षात्कार देने जा रहा था, लेकिन उसके मन में कोई उत्साह नहीं था। साक्षात्कार देने का सिलसिला तो पिछले एक वर्ष से चल रहा है। हर जगह सर्वप्रथम यही पूछा जाता है कि काम करने का अनुभव कितना है। जब कहीं काम मिलेगा तभी तो अनुभव होगा न ।
       उसके जाने से पहले ही मां ने मंदिर का प्रसाद देते हुए कहा, "बेटा पंडित जी कह रहे हैं आज का दिन तुम्हारे लिए बहुत शुभ है।...वे तुम्हारे लिये विशेष रूप से जाप कर रहे हैं...तुम्हें ये नौकरी मिल जाएगी।'
       उसने बहुत श्रद्धापूर्वक प्रसाद खाया और साक्षात्कार के लिए चला गया।

     वह बहुत उत्साहित होकर लौटा था -- "मां मुझे नौकरी मिल गई है। कल से काम पर जाना है। प्राइवेट कंपनी है।  उसके एम.डी. ने कहा है -- 'हम एक्सपीरियेंस को उतना महत्व नहीं देते। हमें हमेशा सिन्सीयर, पंक्चुअल, हार्डवर्कर व्यक्ति की तलाश रहती है। यदि तुम हमारी इन एक्सपेक्टेशन्स पर खरे उतरे तो जल्दी ही तुम्हें प्रमोशन भी दे दिया जाएगा।'
      नौकरी का समाचार सुनते ही मां खुश हो गई। उसी समय दौड़ी-दौड़ी मिठाई लेकर पंडित जी के पास गई। पंडित जी ने पत्री देख कर कहा, "कल-परसों दो दिन शुभ नहीं हैं...तीसरा दिन बहुत शुभ है। बच्चे को उसी दिन काम पर भेजना।'
   तीसरे दिन टिफिन लेकर रमेश काम पर गया और जल्दी ही लौट आया।
 चौंक कर मां ने पूछा- "रमेश इतनी जल्दी क्यों लौट आया ?'
       मुंह लटकाए हुए रमेश ने कहा, "दो दिन बाद गया था न, उन्होंने दूसरा रख लिया ।.

    
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-- पवित्रा अग्रवाल
   

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