Wednesday, November 30, 2011

प्यार पर प्रश्न चिन्ह

   लघु कथा        




                      प्यार पर प्रश्न चिन्ह 


                                                                                
                                                                पवित्रा अग्रवाल





 पत्नी ने पति से पूछा ---
 "सुनो तुम कहाँ जा रहे हो ?'
 "माँ के पास, तुम्हें चलना है तो तुम भी चलो ।'
 "ना मुझे तो नहीं जाना पर तुम क्यों जा रहे हो ?'
 "क्यों का क्या मतलब है ।...तुम भी तो अपनी माँ के पास जाती हो ? अपनी माँ से
मिलने का मेरा मन  नहीं करता क्या ?'
 "वह तो आपको जरा भी प्यार नहीं करतीं बल्कि आपकी बुराई ही करती हैं।'
 "किस से करती हैं मेरी बुराई ?'
 "मुझ से भी करती हैं।' 
"तुम भी तो मेरी शिकायत उनसे करती हो... क्या मैं भी तुम्हारे पास आना छोड़ दूँ ?'
 "मैं ने तो तुम्हारी शिकायत कभी उनसे नहीं की ?'
 "उनको छोड़ो अपने बेटे राहुल की शिकायत तुम मुझ से और मेरी शिकायत राहुल से
नहीं करतीं हो ? तो  क्या मैं यह मान लूँ कि तुम हम दोनों को प्यार नहीं करती  ?....क्या
मैं और राहुल भी तुम्हारे पास   आना छोड़ दें ?'
 "तुम तो बात को कहाँ से से कहाँ मोड़ देते हो। बात का बतंगड़ बनाना तो कोइ तुम से
सीखे ।'
 "यह भी मैं ने तुम से ही सीखा है।...माँ से मिलने जाने की बात सुनते ही तुमने उनके
प्यार पर ही प्रश्न   चिन्ह लगा दिया।'




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  http://laghu-katha.blogspot.com/

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3 Comments:

At December 5, 2011 at 4:30 AM , Blogger चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

प्रेम तो पूजा है और हर मानव के [दानव क्या प्रेम करेंगे!] मन मे प्रेम का वास होता है। आदमी प्रेम करना छोड़ दे तो वह जानवर ही बन जाए

 
At December 12, 2011 at 9:40 PM , Anonymous pavitra agrawal said...

Dhanyvad Chandra Moleshwar ji .

 
At January 18, 2012 at 10:36 PM , Blogger vidya said...

नहले पे देहला....
बहुत खूब :-)

 

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