Monday, May 25, 2020

आप मेरी जगह होतीं तो ?

लघुकथा        
                     आप मेरी जगह होतीं तो ?
                                             
  पवित्रा अग्रवाल

       रात को मुन्ने के रोने से आवाज सुन कर मैं कमरे से बाहर आई तो परेश मुन्ने को गोदी में लिए चुप कराने की कोशिश कर रहा था .मैंने उसे गोदी में लिया तो भी उसका रोना नहीं जारी था  .
‘वर्षा क्या कर रही है ?...उसी की गोदी में चुप होगा ...हो सकता है भूखा हो .’
‘सो रही है...
‘तो उसे उठा दे बेटा ’
‘इतनी देर से रो रहा है माँ , क्या वह आवाज नहीं सुन रही ...उसे मम्मी के पास जाने से रोक लिया न उसी का बदला ले रही है ’
     मुझे याद आया परसों ही उसने मुझ से पूछा था – ‘ मम्मी जी मेरी जगह आप  होतीं तो क्या करती ?’
‘किस विषय में ?’
‘देखिये न भैया आये हुए हैं , मैं उनके साथ मम्मी के पास जाना चाहती हूँ पर ये भेजने को तैयार नहीं हैं .’
    ‘तुम दोनों की खीचा तानी मैं कई दिनों से देख सुन रही हूँ .पर सच पूंछो तो बेटा मैं तुम्हारी जगह होती तो इस समय  मम्मी के पास जाने के विषय में सोचती भी नहीं ’
‘मैं एक साल से वहां नहीं गई हूँ .’                                    
     ‘हाँ एक साल से तुम उस शहर में नहीं गई हो पर तुम्हारी मम्मी तो अभी दो तीन महीने तुम्हारे पास रह कर गई हैं .पापा व भाई ,बहन भी मिलते रहे हैं.  उनके अतिरिक्त तो वहां कोई है भी नहीं जिस से तुम नहीं मिल पाई हो .’
‘ फिर भी मेरा मन है जाने का  '
   ‘बेटा वह तुम्हे जाने से क्यों मना कर रहा है, उसकी भावना भी तो समझो . मुन्ना अभी चार  महीने का भी नहीं हुआ है और इन दिनों वहां कड़ाके की सर्दी पड़ रही है .वह वहां जाकर बीमार ना हो जाए इस लिए ही तो मना कर रहा है ’
   ‘फिर बाद में मैं बच्चे के साथ अकेले कैसे जाऊगी मम्मी जी  ?
‘तुम्हे कौन सा ट्रेन से जाना है, प्लेन से तीन –चार घंटे में पहुँच जाओगी .परेश   तुम्हे एयरपोर्ट छोड़ आएगा ,वहां तुम्हारे पापा ले लेंगे ...वैसे  परेश यह भी तो  कह रहा है कि इस महीने ऑफिस में बहुत काम है .बीस पच्चीस दिन बाद वह तुम्हें  पहुंचा आएगा ,तब तक वहां सर्दी भी कम हो जाएगी ...थोड़े दिन हमारे साथ भी रह लो ...तुम्हे यहाँ कोई परेशानी है तो मुझे बताओ... तुम लोग आने वाले हो इसलिए मैं ने कुक लगा ली थी ’
‘ठीक है मम्मी जी ’
     उसका भाई चला गया, तब से वह गुम सुम सी है.
‘बेटा ऐसे कब तक चलेगा ,जिद्द कर रही थी तो उसे जाने देता .’
‘ठीक है माँ छुट्टी लेकर एक दो दिन में मैं पंहुचा आता हूँ ’

     मुन्ना अब भी  रोये जा रहा था


 ईमेल -- agarwalpavitra78@gmail.com






Labels: